प्राचीन भारत में इतिहास-लेखन की परंपराएँ
Ø इतिहासकारों का मानना है कि - प्राचीन काल में भारतीय लेखन कला से अनभिज्ञ थे।
Ø अलबरूनी ( 'तहकीक-ए-हिन्द' ) - हिन्दू ऐतिहासिक तिथिक्रम के प्रति उदासीन हैं।
Ø उनसे जब कोई ऐतिहासिक बात पूछी जाती है तो वे उत्तर नहीं देते और कहानियाँ गढ़ने लगते हैं।
Ø लीवी, टैसिटस और हेरोडोट्स - वह आधुनिक इतिहास से निकटता का संबंध रखते हैं।
Ø परन्तु फिर भी पाश्चात्य लेखन में कहीं-कहीं काल्पनिकता देखने को मिलती है।
Ø कई भारतीय इतिहासकार - सिर्फ कल्हण द्वारा रचित 'राजतरंगिणी' को ही आधुनिक इतिहास के करीब मानते हैं।
Ø पाश्चात्य दर्शन की प्रमुख विशेषता - इसमें ज्ञान पर अत्यधिक बल प्रदान किया गया है
Ø पाश्चात्य विद्वानों का उद्देश्य प्रज्ञावान या बुद्धिवान व्यक्ति बनाना होता है,
Ø स्त्रियाँ भी इस तरह के लेखन में सहयोग दिया करती थीं।
Ø भारतीय - वे तिथिक्रम की अपेक्षा युग परंपरा को मानते थे।
Ø भारत के हजारों वर्षों के इतिहास में तिथियों और तारीखों को कोई महत्त्व नहीं दिया गया।
Ø इसलिए तिथिक्रम से लिखा हुआ इतिहास उपलब्ध नहीं होता है।
Ø ब्राह्मण, बौद्ध और जैन धर्म के अतिरिक्त ऐतिहासिक ग्रंथ या लौकिक साहित्यों से - उस समय के सामाजिक, ' राजनीतिक, धार्मिक, सांस्कृतिक और आर्थिक जीवन की जानकारी मिलती। है।
Ø प्रोफेसर ए. के. बार्डर ( 'एन इन्ट्रोडक्शन टू इंडियन हिस्टोरियोग्राफी' ) - बम्बई 1972 में भारतीय इतिहास को तिथिक्रम के आधार पर देने का प्रयास किया गया है।
Ø प्राचीन भारत का इतिहास अधिकांश साहित्य धार्मिक था,
Ø ऋग्वैदिक संहिता वेदों में सर्वाधिक प्राचीन ग्रंथ है।
Ø वेद संस्कृत की विद् धातु से बना है, जिसका अर्थ है जानना ।
Ø वेदों के संकलनकर्त्ता वेदव्यास को माना गया है,
Ø कुछ लोग वेदों को अपौरुषेय या देवकृत मानते हैं।
Ø इसकी रचना लगभग 1500 ई० पूर्व से 1000 ई० पूर्व मानी गई है।
Ø वेदों की कुल संख्या चार है, - ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद हैं।
Ø ऋग्वेद में जो लेखन मिलता है, वह ऋच्चाओं के रूप में संकलित है।
Ø ऋच्चाओं - वेद के श्लोक या मंत्र
Ø इसमें दस मंडल और आठ अष्टक व 1028 सूक्त हैं।
Ø सूक्तों का लेखन - विश्वामित्र, वामदेव, अत्रि, भारद्वाज, वशिष्ठ, गृत्सयद प्रमुख हैं।
Ø अथर्ववेद की रचना अथर्व नामक ऋषि ने की थी।
Ø इसमें औषधि ज्ञान, रोग निवारण, जादू-टोना, जन्त्र-मन्त्र आदि का वर्णन मिलता है।
Ø ब्राह्मण ग्रंथों की रचना, यज्ञों एवं कर्मकाण्डों को समझने के लिए हुई थी।
Ø उपनिषद् में दार्शनिक विचारों का संग्रह मिलता है।
Ø ईश, केन, कठ, मांडूक्य, तैत्तरीय, ऐतरेय, छान्दोग्य, श्वेतास्वर, वृहदारण्यक, कौशीतकी, मुण्डक आदि प्रमुख उपनिषद हैं।
Ø भारत का प्रसिद्ध आदर्श वाक्य 'सत्यमेव जयते' - मुण्डक उपनिषद से लिया गया है।
Ø उपनिषद का शाब्दिक अर्थ है समीप बैठना अर्थात गुरु के समीप बैठकर प्राप्त किया गया ज्ञान।
Ø वैदिक साहित्य के बाद सूत्र साहित्य की रचना हुई।
Ø इनमें गृहसूत्र, कल्पसूत्र और धर्मसूत्र है।
Ø गृहसूत्र में गृहस्थ जीवन से संबंधित संस्कारों और कर्मकांड का वर्णन है।
Ø धर्मसूत्रों से उस समय के सामाजिक और धार्मिक जीवन पर प्रकाश पड़ता है।
Ø कल्पसूत्र में वैदिक कर्मकांडों को विधि-विधान से करने का विवरण मिलता है।
Ø 200 ई. पूर्व से 150 ई. तक मनुस्मृति और याज्ञवल्क्य स्मृति की रचना हुई
Ø नारद, पराशर, बृहस्पति, कात्यायन, गौतम, संवर्त, हरीन, अंगिरा आदि स्मृतियों का समय 100 ई. पूर्व से 600 ई पूर्व तक माना गया है।
Ø नारद स्मृति से गुप्त वंश के बारे में जानकारी मिलती है।
Ø मनुस्मृति में भी उस काल से राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक और आर्थिक ढाँचे पर प्रभाव पड़ता है।
Ø रामायण और महाभारत भारत के दो सर्वाधिक प्राचीन महाकाव्य हैं।
Ø वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण सात खंडों में उपलब्ध है।
Ø इनके नाम हैं - बालकाड, अयोध्याकांड, अरण्यकांड, किष्किन्धाकांड, सुन्दरकांड, युद्धकांड और उत्तरकांड ।
Ø महाभारत की रचना महर्षि वेदव्यास ने की थी।
Ø इसमें 6800 श्लोक हैं, बाद में श्लोकों की संख्या 24000 हो गई, बाद में बढ़कर एक लाख हो गई,
Ø इसका नाम 'जयसंहिता' रखा गया।
Ø भरत के वंशजों कथा होने के कारण इसका नाम भारत रखा गया।
Ø इसका नाम ‘शतसहस्त्री संहिता' या महाभारत पड़ा।
Ø बारहवीं शताब्दी में हेमचन्द द्वारा लिखित 'परिशिष्टपर्वन' है,
Ø जिसमें मौर्यकाल तक के सम्राटों की जानकारी मिलती है।
Ø नवीं शताब्दी के जैन ग्रंथों से मगध, सातवाहन, शक, गुप्त, कान्यकुब्ज आदि के बारे में जानकारी मिलती है।
Ø 'अर्थशास्त्र' चाणक्य द्वारा रचित कृति हैं
Ø जिसे भारत का पहला राजनीति-ग्रंथ माना गया है।
Ø इस ग्रंथ से मौर्यकालीन सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक स्थिति की जानकारी मिलती है।
Ø 'मुद्राराक्षस' नामक ग्रंथ की रचना विशाखदत्त ने पांचवीं शताब्दी ईसा पूर्व में की थी।
Ø इसमें चंद्रगुप्त मौर्य एवं उसके गुरु चाणक्य के विषय में जानकारी मिलती है।
Ø 12वीं शताब्दी में 'पृथ्वीराज रासो' नामक रचना जिसका लेखन चंदबरदाई ने किया था।
Ø इसमें प्रतिहार चालुक्य, परमार, और चह्वाण की उत्पत्ति का वर्णन है
Ø 11वीं शताब्दी में 'विक्रमांकदेवचरित' की रचना विल्हण नामक कवि ने की थी।
Ø इस ग्रंथ में चालुक्य नरेश विक्रमादित्य षष्ठ के विषय में जानकारी मिलती है।
Ø 'पृथ्वीराजविजय' की रचना कश्मीरी पंडित जयनक ने की थी।
Ø इस ग्रंथ में पृथ्वीराज तृतीय के विषय में जानकारी प्राप्त होती है।
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प्राचीन भारत में इतिहास-लेखन की परंपरा
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By Vishwajeet Singh