MHI-03, Lesson-6, Part-2 , पारंपरिक चीनी इतिहास-लेखन || The E Nub ||

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पारंपरिक चीनी इतिहास-लेखन




चीन के पारंपरिक इतिहास लेखन

ü चीन के पारंपरिक इतिहास लेखन का एक विशेष गुण वस्तुपरकता सत्यता है।

ü समाचिएन के समय से ही तथ्यों की प्रामाणिकता पर विशेष जोर दिया गया है।

ü समाचिएन ने इतिहास लेखन में औपचारिकता और दृढ़ शैली को छोड़कर जीवंत रूप में तथ्यों को प्रस्तुत किया है।

ü उसके पश्चात चीन के अनेक इतिहासकारों ने इसका अनुसरण किया।

ü चीन के इतिहासकार वान गु  -  समाचिएन के विषय में लिखा है कि वे प्रवचन शब्दाडंबर के बिना और सहज होकर करते थे।

ü उनका लेखन अत्यधिक स्पष्ट था।

ü उनके लेखन में तथ्य बोलते हैं।

ü वह तो सौंदर्य को झुठलाते हैं और ही बुराई को छिपाते हैं

ü इसलिए उन्हें एक सच्चा दस्तावेज कहा जा सकता है।

 

ü समाचिएन के बाद के चीनी इतिहासकार उससे बहुत अधिक प्रभावित थे,

ü इसलिए वे तथ्यों को जितना हो सके उतना वस्तुगत तरीके से प्रस्तुत करना चाहते थे।

ü तथ्यों में सत्यता होनी चाहिए।

ü इस बात को ध्यान में रखकर वे लेखन कार्य करते थे।

ü इतिहासकार विषय को अपने शब्दों में लिखने के बजाय सामग्री के अंश जैसे के तैसे उतार लेते थे।

ü इसे चीन के इतिहास में साहित्यिक चोरी का नाम देकर ऐतिहासिक पुनर्निर्माण का सबसे सरल तरीका कहा गया है।

 

ü चीन के इतिहास लेखन में अधिकारियों का योगदन महत्त्वपूर्ण है।

ü चीन में प्रारंभ से ही व्यक्तिगत रूप से इतिहासकार लेखन- का कार्य करते आए हैं।

ü परंतु उन्होंने कभी भी राजकीय लेखन को चुनौती नहीं दी

ü इतिहास लेखन का कार्य इस समय सबसे अधिक सरकारी दस्तावेजों को लेकर हुआ,

ü क्योंकि उन्हें ये दस्तावेज आसानी से उपलब्ध हो जाया करते थे।

 

ü चीनी इतिहास लेखन ने अतीत के माध्यम से वर्तमान शासकों का मार्गदर्शन करना उनका एक उद्देश्य था

ü अतः वर्तमान शासन में उपजी समस्या का समाधान अतीत के पन्नों को खोलकर किया जाना चाहिए,

ü ऐसा करने से यह पता चलता है कि जब हमारे पूर्वजों के समय यह समस्या उत्पन्न हुई थी, तो उसका समाधान उन्होंने किस प्रकार किया था।

ü अतः चीनी इतिहास लेखन के अनुसार अतीत में हुए विद्वान, महान दार्शनिक, गौरवशाली शासक, कर्त्तव्यनिष्ठ अधिकारियों से कुछ भी सीखा जा सकता है।

 


ü प्रारंभ में पारंपरिक चीनी इतिहासकारों ने जो लेखन का कार्य किय, वह बड़ा ही जटिल था।

ü इसका कारण यह था कि इतिहासकारों ने ग्रंथों के खंडों उपखंडों को एक से नाम दिए थे।

ü इससे किसी भी विषय के बारे में अध्ययन में कठिनाई होती थी।

ü परंतु परवर्ती इतिहासकारों ने इस समस्या का समाधान कर दिया।

ü अतः आज कोई भी व्यक्ति जो चीन के विषय में अध्ययन करना चाहे, वह किसी संस्था के बारे में हो या किसी अधिकारी या शासक के विषय में हो, उसे आसानी से ढूंढा जा सकता है।

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By Vishwajeet Singh

 

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