MA History || MHI - 101 || Unit - 1, EARLY HUMAN SOCIETIES Part -3 & 4 ||

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 Unit - 1 EARLY HUMAN SOCIETIES Part- 3 & 4

 ( प्रारंभिक मानव समाज )



पशुपालक खानाबदोशी

vप्रारम्भिक काल में मानव शिकारी-संग्रहकर्त्ता की जीवन-शैली के साथ अपना जीवनयापन कर रहा था।
v  समय के साथ उसके ज्ञान में वृद्धि हुई तथा वह विभिन्न प्रकार के पशुओं एवं वनस्पतियों के प्रजनन एवं प्रकृति से परिचित हुआ।
v  इस प्रकार पशुपालक खानाबदोशी जीवन-शैली का आरम्भ पशुओं को पालतू बनाने से आरम्भ हुआ।
v  कुत्ता, सूअर और घोड़े जैसे पशुओं को पालने का प्रमाण मध्यपाषाण काल से ही मिलता है।
v  भेड़, बकरी और मवेशी के पालने की शुरुआत ने मनुष्य की जीवन पद्धति को काफी प्रभावित किया।
v  पशुपालन के आरम्भ के साथ ही मानव की जीवन-शैली में व्यापक परिवर्तन हुआ।
v  शिकारी-संग्रहकर्त्ता जीवनयापन शैली में जानवरों को मारकर तुरन्त खा लिया जाता था,
v  पशुपालन के बाद अब जानवरों को पाला जाने लगा
v  भोज्य पदार्थ के अभाव में इसका उपयोग भोजन के रूप में किया जाने लगा।
v  पशुपालक खानाबदोशों पशुओं के लिए चरागाह की खोज में निरन्तर घूमा करते थे।
v  किसानों की तरह इनका निवास स्थान नहीं होता था।
v  इन पशुपालकों का क्षेत्र आमतौर पर एशिया, अफ्रीका और अमेरिका के घास के मैदान होते थे,
v  यहां इनके पशुओं के लिए पर्याप्त चरागाह उपलब्ध होते थे।
v  सभी पशुपालक खानाबदोश एक ही तरह के पशुओं को नहीं पाला करते थे,
v  क्षेत्र के अनुसार उनकी पशु प्रजातियों में भिन्नता भी होती थी।
v  पश्चिम तथा दक्षिण एशिया एवं उत्तरी तथा पूर्वी अफ्रीका के मैदानों में रहने वाले खानाबदोश पशुपालक सामान्यतः बकरी, भेड़ एवं मवेशी पाला करते थे।
v  उनकी सम्पत्ति इनके पशु ही होते थे।
v  यूरेशियाई स्टेप्स में हालांकि पशुपालन व्यवस्था के आरम्भ से पूर्व रेन्डियर को पालतू बनाया जाना शुरू कर दिया गया था।
v  पशुपालक समुदाय आमतौर पर समकालीन सभ्यताओं के मुख्य केन्द्र से दूर रहा करते थे।
v  अरव एवं अफ्रीका में रहने वाले पशुपालक खानाबदोश विशेषकर ऊँट पाला करते थे,
v  यह कम भोजन एवं पानी पर भी कई दिनों तक जिंदा रह सकता था।
v  ऊँट पालने से सहारा एवं अरब मरुभूमियों से गुजरने वाले व्यापारिक मार्गों पर इनका नियन्त्रण भी हो गया था।
v  खानाबदोश समूहों को अपने जीवनयापन के लिए पशुओं को पालना तथा इनका रखरखाव करना अपरिहार्य था।
 


v  आधुनिक अध्ययनों से यह ज्ञात हुआ है कि सच्चा खानाबदोश गरीब होता है।
v  ज्यादा सम्पत्ति उसके लिए भार होती है।
v  उसके पास उतना ही सामान होता था, जितना वह ढो सके।
v  खानाबदोश पशुपालक आमतौर से घुमन्तू होते थे।
v  ये मौसम के अनुसार चरागाह की खोज में एक स्थान से दूसरे स्थान पर विचरण किया करते थे।
v  ये अपनी जरूरत के सामानों विनिमय के माध्यम से प्राप्त करते थे।
v  ये अपने पशु या उनका उत्पाद उन्हें देते थे तथा बदले में इनसे अनाज आदि पदार्थ प्राप्त करते थे।
v  जब कोई खानाबदोश अमीर हो जाते थे, तो वे एक स्थान पर बस जाया करते थे।
v  जो खानाबदोश बहुत गरीब होते थे, वे भी बहुत दिनों तक इस जीवन-शैली को नहीं अपना पाते थे।
v  जब कभी इनके पशुओं की अचानक बीमारी आदि से बड़े पैमाने पर मृत्यु हो जाती थी, तो या तो ये लोग स्थायी बसे समुदायों की सेवा में लगकर अपना जीवनयापन करते थे
v  या फिर लूटमार का पेशा अपनाकर जीवनयापन करते थे।
v  आमतौर पर पशुपालक खानाबदोशों में योद्धा पुरुषों का वर्चस्व होता था।
v  शारीरिक सौंदर्य और साहस पुरुष का अलंकार माना जाता था।
v  खानाबदोश पशुपालकों द्वारा घोड़े के प्रयोग के कारण विशाल साम्राज्य भी स्थापित किया गया।
v  घोड़े को पालतू बनाने के बाद इनकी प्रकृति आक्रामक हो गई
v  स्थिर बसे समाज के लिए ये आक्रमणकारी के रूप में माने जाने लगे।
v  खानाबदोश समूह का ही सुप्रसिद्ध नेता चंगेज खां जिसने था,
v  तेरहवीं शताब्दी में अब तक के सबसे बड़े साम्राज्य का निर्माण किया था।
v  जेरार्ड चालियानड के अनुसार - आतंकवाद की उत्पत्ति खानाबदोश-योद्धा संस्कृतियों में हुई थी। 
v  खानाबदोश स्टेपी-शैली युद्ध के प्राथमिक ऐतिहासिक स्रोत कई भाषाओं में पाए जाते हैं: चीनी, फ़ारसी, पोलिश, रूसी, शास्त्रीय ग्रीक, अर्मेनियाई, लैटिन और अरबी। 
v  ये स्रोत सच्चे स्टेपी खानाबदोशों ( मंगोल , हूण , मग्यार और सीथियन ) और तुर्क , क्रीमियन टाटार और रूसी जैसे अर्ध-निवासी लोगों दोनों से संबंधित हैं,

v  जिन्होंने युद्ध के खानाबदोश रूप को बरकरार रखा या कुछ मामलों में अपनाया

 

Part-4

नातेवारी और इसका उदय

v  वंश और विवाह के आधार पर जो सम्बन्ध बनता है उसे नातेदारी सम्बन्ध के रूप में परिभाषित किया जाता है।
v  नातेदारी का इतिहास काफी पुराना है।
v  आदिमानवों में भी भाई-बहन के रूप में नातेदारी सम्बन्ध था।


v  आर. फॉक्स का मत है कि गठबन्धन और वंश-परम्परा मनुष्य की अनूठी खोज है।
v  इस खोज के कारण ही मनुष्य दूसरे समुदायों के साथ सम्पर्क और मित्रता स्थापित कर सका।
v  बेटा या बेटी के विवाह के बाद दूसरे समुदाय से स्वाभाविक रूप से नातेदारी का सम्बन्ध स्थापित हो जाता है।
v  नातेदारी का एक महत्त्वपूर्ण पक्ष यह है कि यह केवल खून का रिश्ता नहीं था, बल्कि इसमें सामाजिक सम्बन्ध भी शामिल थे।
v  जहाँ खून का रिश्ता बहुत सीमित होता है, वहीं नातेदारी का सम्बन्ध काफी व्यापक होता है।
 
v  आर. फॉक्स का मानना है कि नातेदारी की उत्पत्ति का सम्बन्ध मांसाहारी भोजन की ओर धीरे-धीरे झुकाव होने से था।
v  हालांकि आरम्भिक मानवों में इन सम्बन्धों का विशेष महत्त्व था।
v  बड़े जानवरों का बड़े पैमाने पर शिकार करने से स्त्री और पुरुष के कार्य का पूरी तरह विभाजन हो चुका था।
v  इसका कारण यह था कि बड़े जानवरों के शिकार में ज्यादा श्रम की आवश्यकता पड़ती थी।
v  इस कारण महिलाओं को इसमें शामिल नहीं किया जाता था।
v  महिलाएँ घर का काम एवं छोटे बच्चों की देखभाल करती थीं।
v  साथ ही महिलाएँ भोजन इकट्ठा करने का काम भी किया करती थीं।
v  हालांकि पूर्व में भोजन संग्रह का कार्य सामूहिक रूप से किया जाता था,
v  जब पुरुष शिकार पर जाने लगे तथा महिलाएँ घरेलू कार्य के साथ-साथ भोजन इकट्ठा करने लगीं,
v  इससे उनके पारस्परिक रिश्ते में परिवर्तन हुआ।
v  इसके पहले पुरुष एक साथ रहते थे तथा सभी महिलाएँ अपने बच्चों के साथ एक साथ रहती थीं।
v  यौन आधारित श्रम-विभाजन के बाद पुरुष और स्त्री भोजन अर्थात् सब्जी और मांस के बंटवारे के लिए एक-दूसरे पर बिल्कुल नए तरीके से आश्रित हो गए।
v  फॉक्स कहते हैं कि यही व्यापार सम्भवत: सही अर्थों में मानव समाज की उत्पत्ति का आधार साबित हुआ।
v  इसी का परिणाम था कि परिवार जैसी नई इकाई का निर्माण हुआ जिसमें वयस्क पुरुष, महिलाएँ तथा उनके बच्चे साथ-साथ रहने लगे।
v  इस प्रकार प्रथम नातेदारी का जन्म यहीं से हुआ।
v  मानव समाज रक्त सम्बन्धियों के बीच वैवाहिक सम्बन्ध बनाने पर रोक है, जिसका परिणाम यह हुआ कि मानव ने बहिर्विवाह की प्रथा कायम की।
v  इस प्रथा के कारण ही मानव को बाध्य होकर दूसरे समुदाय में विवाह करना पड़ा।
v  दूसरे समुदाय में विवाह करने की प्रथा के कारण -  प्रारम्भ में दूसरे समुदाय के साथ सौहार्दपूर्ण सम्बन्ध रखना अनिवार्य था,
v  सम्बन्ध सौहार्दपूर्ण नहीं रहने की स्थिति में विवाह सम्भव नहीं था।
v  इस प्रकार नातेदारी का विस्तार होना प्रारम्भ हुआ।
v  एक-दूसरे पर आश्रित होने के कारण इस प्रकार की नातेदारी समय के साथ गहरी होती गई।
v  पति-पत्नी का एक-दूसरे पर आश्रित सम्बन्ध के कारण इनका आपसी सम्बन्ध समय के साथ काफी सुदृढ़ होता गया
 
v  नातेदारी की उत्पत्ति का मूल कारण एक-दूसरे पर अवलंबन है।
v  जब मानव समूह एक-दूसरे पर आश्रित होता है, तो इसके कारण उनके सम्बन्ध भी सौहार्द होते हैं।
v  इन परिस्थितियो में ऐसा भी देखा गया है कि कभी-कभी केवल सामाजिक सम्बन्ध भी नातेदारी सम्बन्ध बन जाते हैं, जिसका मूल कारण है पारस्परिक निर्भरता।
v  इस तरह के सम्बन्धों को बाद में विवाह से और मजबूत भी बनाया जाता था।
v  नातेदारी सम्बन्धों के विकास में समाज में बढ़ती प्रतियोगिता एवं शत्रुता ने भी योगदान दिया।
v  जब समाज में एक समूह की किसी दूसरी समूह के साथ शत्रुता उत्पन्न हो जाती है, तो जो लोग एक समूह का साथ देते हैं, वे किसी--किसी रूप में इस समूह से नातेदारी से या तो पहले जुड़े होते हैं या फिर बाद में जुड़ जाते हैं।


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The E Nub & Nub Info
By Vishwajeet Singh

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