शिकार - संग्रहण,
प्रारंभिक कृषि समाज, पशुचारण
शिकार - संग्रहण, प्रारंभिक कृषि समाज, पशुचारण
(Hunting
Gathering, Primitive Agricultural Society, Cattle Pasturing)
पुरापाषाण युग की प्रमुख विशेषताएँ
Ø Paleolithic
(पुरापाषाण काल) - पुरापाषाण काल (25 लाख ईसा
पूर्व से 10,000 ईसा पूर्व)
Ø पुरापाषाण का अर्थ है पुराना
पत्थर युग।
Ø पुरापाषाण में पूर्व, मध्य व उत्तर का विभेद निम्न के आधार पर किया जाता है-
· पत्थरों के औजारों की किस्म
· उन्हें बनाने की तकनीक और
· स्तर क्रम विज्ञान (Stratigraphy) पर आधारित सापेक्ष तिथियाँ।
1. पूर्व पुरापाषाण का काल लगभग 19 लाख वर्ष पहले का
2. मध्य पुरापाषाण का काल लगभग 80,000 से 40,000 वर्ष ई.पू. का और
3. उत्तर पुरापाषाण का काल 40,000 से 10,000 वर्ष ई.पू. तक का बताया जाता है।
Ø पूर्व पुरापाषाण की पहचान प्रायः दो प्रकार के औजारों की उपस्थिति से की जाती है-
· (i) गंडासा (चॉपर) और (ii) कुल्हाड़ी।
· गंडासे को विशेषकर गैर-भारतीय संदर्भ में कुल्हाड़ी से पहले माना जाता है।
Ø मध्य पुरापाषाणकालीन औजारों की पहचान शुल्कों (Flake) से होती है।
· औजार अधिकतर कुरेदने व छीलने वाले होते थे।
Ø उत्तर पुरापाषाण युग में धार वाले (Blade) औजारों का अधिक चलन था ।
(i) पूर्व पुरापाषाण में स्फटिक (quartrite) पत्थर का अधिक प्रयोग था।
(ii) मध्य पुरापाषाण में जेस्पर का अधिक प्रयोग था।
Ø पूर्व और मध्य पुरापाषाण युगों में औजार बनाने की प्रौद्योगिकी अपेक्षाकृत सरल थी।
Ø शल्कों को मूल अश्म पिण्डों अर्थात पत्थरों के टुकड़ों से पृथक् कर दिया जाता है।
Ø पूर्व पुरापाषाण युग में गंडासे जैसे औजारों को सिरों पर छीला जाता था,
Ø कुल्हाड़ी या हस्तकुठारों को दोनों ओर से छीले गए (द्विमुखी) औजार भी कहा जाता था
Ø उस युग में अश्म पिंडों को सावधानीपूर्वक तैयार किया जाता था,
Ø जिससे कि पत्थर के एक ही टुकड़े से अनेक फलक निकाले जा सकें।
Ø इसके लिए महीन दाने वाले पत्थरों को प्रयुक्त किया जाता था।
Ø इसकी उपयोगिता इस प्रकार थी-
· तेज धार वाले औजार बन जाते थे।
· इस प्रौद्योगिकी से थोक उत्पादन भी हो जाता था।
· इसमें औजार बनाने के अधिक सक्षम तरीके का प्रयोग होता था।
Ø (iii) उत्तर पुरापाषाणकाल के औजार प्रचुर थे।
- उनका उपयोग विभिन्न कामों के लिए किया जा सकता था।
- इसी काल में औजार बनाने में हड्डी का प्रयोग भी हुआ।
- औजारों के आकार का धीरे-धीरे छोटा होता जाना पुरापाषाण काल की विशेषता है।
- सबसे बड़े औजार पूर्व पुरापाषाण काल में मिलते हैं।
- ये मध्य भारत के स्थलों, जैसे- भीमबेटका अथवा होशंगाबाद जिले के आदमगढ़ पहाड़ी क्षेत्र में पाए गए हैं।
- पूर्व और मध्य पुरापाषाणकाल के इंसानों के व्यवसायों की पहचान अधिकाधिक छोटे आकार के औजारों से होती है।
v पुरापाषाण काल के औजारों की उपलब्धता-
§ खुले में अथवा पत्थर के आवास स्थलों में।
§ कच्चे माल के स्रोतों के निकट कारखाना स्थल में, जहाँ औजार निर्मित किए जाते थे।
§ आवास स्थल और कारखाना स्थल ।
§ औजारों का विस्तार ।
§ नदियों के तटों पर खंडों में।
वे घनी वनस्पति वाले ऐसे क्षेत्रों से बचते रहे होंगे, जैसे- केरल में हैं।
v पुरापाषाण स्थल
· हिमालय की तलहटी में।
· मध्य भारत की पहाड़ियों की सीमा से लगे गंगा के किनारे पर।
· थार रेगिस्तान के किनारों पर और
· अधिकांश मध्य तथा प्रायद्वीपीय भारत में।
v पुरापाषाण और मध्यपाषाण का एक अन्य साक्ष्य वह कला है-
· पाषाण (पत्थरों) पर खुदाई
· पत्थरों की कटाई
· गुफाओं के भित्ति चित्र
· चट्टानी बसेरे
· भौगोलिक दृष्टि से ये उन क्षेत्रों तक सीमित हैं, जहाँ शैल समूह उपलब्ध हैं,
· जैसे-मध्य भारत के विस्तृत बलुआ पत्थर के समूह, जहाँ ऐसे बसेरे प्रायः पाए जाते हैं, जिनमें चित्रकारी की गई है।
· मध्य भारत के अतिरिक्त उत्तर भारत में लद्दाख में खुदाई किए हुए पत्थर पहले ही मिल चुके हैं।
· सुबाह्य (Portable) कला वस्तुएँ भी प्राप्त हुई हैं, जैसे-
· (i) राजस्थान से मिले शुतुरमुर्ग के सज्जित अंडे, जो रेडियो कार्बन गणना के अनुसार लगभग 40,000 वर्ष ई.पू. के हैं।
· (ii) पाटने के अंडे के छिलके 25,000 वर्ष ई.पू. के आँके गए हैं, शैल चित्र उपलब्ध हुए हैं।
· प्रारंभिक चित्रकारी प्रायः शिकार और संग्रहण के दृश्यों पर केन्द्रित है।
· शिकार के चित्रण का यथार्थ शिकार की प्रभाविता के अर्थ में देखा गया है
· चित्रण में जानवर को मारने से यही बात व्यवहार में भी सुनिश्चित होगी।
· प्रारंभिक चित्रकारी की सही तिथि निश्चित करना कठिन है।
· सही तिथि का पता करना कठिन होने पर भी सापेक्ष तिथियों को सरलतापूर्वक ज्ञात किया जा सकता है।
· कारण यह है कि चित्रकारी प्राय: एक के ऊपर एक की गई है।
· अतः यह ज्ञात करना संभव है कि कौन-सी चित्रित सतह पहले की है?
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By Vishwajeet Singh