आखटेक-संग्रहकर्त्ता समाज
(Hunting-Gathering)
आखटेक-संग्रहकर्त्ता समाज (Hunting-Gathering)
Ø आखेटक-संग्रहण सामाजिक अवस्था की पुनर्रचना करने में पुरातत्त्वीय प्रमाण काफी उपयोगी सिद्ध हुए।
Ø पुरातत्त्वविदों को पाषण उपकरण प्रचुर मात्रा में मिले हैं।
Ø इन उपकरणों का किसी स्थान विशेष पर मिलना यह साबित करता है कि उपलब्ध आवश्यक सामग्री के आधार पर इनका निर्माण किया जाता था।
Ø पुरातत्त्वविदों द्वारा इन उपकरणीय प्रमाणों का विश्लेषण तत्कालीन सांस्कृतिक सन्दर्भ में किया गया।
Ø इन्हीं उपकरणों के आधार पर आखेटक संग्रहण समाजों की जीवन शैली के बारे में हम कल्पना कर सकें।
Ø आखेटक संग्रहण समाजों को विकास की अवस्थाओं के आधार पर दो भागों में बाँटा गया है-
Ø आदिपाषाण अवस्था तथा मध्यपाषाण अवस्था
Ø आदिपाषाण अवस्था मानव समाजों की उस अवस्था से सम्बन्धित है, जिसमें उनके द्वारा पाषाण उपकरणों का प्रयोग किया जाता था।
Ø आदिपाषाण अवस्था को भी मुख्यतः तीन भागों में विभाजित किया गया है।
1. पुरा आदिपाषाण काल,
2. मध्य आदिपाषाण काल तथा
3. उत्तर आदिपाषाण काल।
Ø यह वर्गीकरण मुख्यतः उनकी कलाकृतियों के आकार, माप तथा निर्माण विविधता पर आधारित है।
Ø पूर्व आदिपाषाण काल की विशेषता का आधार उस काल में प्राप्त हस्त कुठार, विदारणी इत्यादि कृतियाँ हैं।
Ø मध्य आदिपाषाण काल में अपेक्षाकृत छोटे, हल्के औजार आते हैं
Ø उत्तर आदिपाषाण काल में और भी हल्के उपकरण तथा औजारों के रूप में फलक तथा तक्षणी हैं।
Ø उत्तर - पुरापाषाण काल के बाद मध्यपाषाण काल का उदय होता है।
Ø इस अवस्था का सम्बन्ध जलवायु में व्यापक परिवर्तन से है।
Ø इस अवस्था में और तकनीकी विकास छोटे पाषाण उपकरणों के उत्पादन में भी देखा जा सकता है।
Ø मध्यपाषाण उपकरणों में मुख्य रूप से फलक, सार भाग, नोक, त्रिकोण तथा नवचन्द्राकार आते हैं।
Ø प्राचीन आदिमानवों के विषय में आम धारणा यह रही है।
Ø उनका जीवन असभ्य व जंगली था,
Ø पुरातत्त्वीय स्थलों से मिले प्रमाणों के आधार पर कहा जा सकता है कि - आखेटक - संग्रहण समूह एक सामाजिक जीवन जीते थे।
Ø यह परिवार, स्थानीय जन-समूह तथा विस्तृत सामाजिक सम्बन्धों पर आधारित था।
Ø आरम्भिक उपनिवेशों या बस्तियों के बीच व्यापार अथवा विनिमय के उदाहरण मिलते हैं,
Ø पूर्व आदिपाषाण स्थलों का समृद्ध क्षेत्र मध्य भारत तथा पूर्वी घाटों के दक्षिणी भागों में पाया गया है।
Ø इसका मुख्य कारण सम्भवतः अनुकूल पर्यावरण का होना था।
Ø मध्य आदिपाषाणिक समुदायों द्वारा उन्हीं क्षेत्रों का चयन किया गया, जो उनके अनुकूल थे, जैसे-पश्चिमी राजस्थान, मेवाड़ का क्षेत्र तथा गुजरात के मैदान।
Ø इसी तरह उत्तर आदिपाषाण काल में जलवायु परिवर्तन हुआ।
Ø इसके कारण आखेटक-संग्रहण समाज का भोजन स्रोत सीमित हो गया।
Ø इनके स्पष्ट प्रमाण राजस्थान, गुजरात तथा मध्य भारत में मिलते हैं।
Ø आखेटक संग्रहण समाज की अन्तिम कड़ी में मध्य पाषाणकालीन समाज आता है।
Ø इस काल से सम्बन्धित स्थल अपने पहले के स्थलों की अपेक्षा सबसे अधिक संख्या में पाए गए हैं।
Ø उदाहरण के लिए -
पश्चिमी राजस्थान, उत्तरी गुजरात, उड़ीसा, मध्य भारत, छोटा नागपुर, दक्कन का पठार इत्यादि ।
Ø कुछ ऐसे भी क्षेत्र हैं, जो पहले के कालों में निर्जन (एकांत) थे,
Ø वे भी मध्यपाषाण काल में अधिगृहीत किए गए हैं।
Ø इनमें गंगा की घाटी, दामोदर की घाटी, केरल के तटीय क्षेत्र तथा तमिलनाडु का दक्षिणी तट आते हैं।
Ø इस काल के लगभग दो सौ स्थल गंगा घाटी के दक्षिणी मध्य भाग में स्थित हैं।
Ø मध्यपाषाण कालीन संस्कृति की एक अन्य महत्त्वपूर्ण विशेषता तत्कालीन मानवों द्वारा चट्टानों व गुफाओं में की गई शैल या गुफा चित्रकारी थी।
Ø इन चित्रकलाओं के सूक्ष्म अध्ययन से मानवों के धार्मिक आचार-व्यवहार, उनकी कल्पनाशीलता और दैनिक क्रिया-कलापों की जानकारी प्राप्त होती है।
Ø भीमबेतका, आजमगढ़, प्रतापगढ़ और मिर्जापुर जैसे कुछ महत्त्वपूर्ण मध्यपाषाण कालीन स्थल अपनी समृद्ध चित्रकला के लिए प्रसिद्ध हैं।
Ø इन चित्रों में या तो पशुओं के झुण्ड दिखलाए गए हैं या शिकार के दृश्य।
Ø इन सभी चित्रों के विषय मुख्यतः जानवर हैं।
Ø यह वह काल भी है जब हमें शवों के विधिवत् दफनाएँ जाने के साक्ष्य मिलते हैं, जिससे लगता है कि मरणोपरान्त जीवन में विश्वास की शुरुआत हो चुकी थी।
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By Vishwajeet Singh