परिषदों
के भीतर व
बाहर प्रतिरोध (Resistance Within and Outside the Councils)
पृष्ठभूमि
ü
प्रथम विश्व युद्ध
के बाद
ü ब्रिटिश सरकार - वह कुछ संवैधानिक सुधार करेगी, परंतु सबकुछ इसके विपरीत हुआ।
ü भारत सरकार के 1919 के अधिनियम
ü विधान सभा और केन्द्र स्तर पर भारतीयों के प्रतिनिधि के रूप में चुनाव का अधिकार छीन लिया गया।
ü बंगाल के चितरंजन दास ने कांग्रेस को विधान सभा के चुनावों में भाग लेने के लिए सलाह दी।
ü अखिल भारतीय कांग्रेस ने इसको स्वीकार नहीं किया।
ü यहाँ से स्वराज के आदर्श की शुरुआत हुई।
ü विधान सभाओं में प्रवेश को लेकर कांग्रेस में विवाद उत्पन्न हो गया।
ü कुछ इससे सहमत थे और कुछ ने इसका विरोध किया।
ü दिसम्बर, 1922 - 'गया' अधिवेशन में भी सहमति नहीं हुई
ü कांग्रेस ने विधानसभा प्रवेश की अनुमति नहीं दी।
ü फलस्वरूप सी.आर. दास ने कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया
ü अपने कांग्रेस समर्थकों के साथ नई पाटी 'कांग्रेस खिलाफत स्वराज पार्टी' बनाई।
ü मौलाना अबुल कमाल आजाद कांग्रेस के नए अध्यक्ष बने
ü उन्होंने दोनों दलों को मिलाने का प्रयास किया, परंतु सफल नहीं हुए।
ü 1924 को ब्रिटिश सरकार ने गाँधी को जेल से मुक्त कर दिया।
ü 1924 के बेलगाँव अधिवेशन में गाँधी और चितरंजन दास में सहमति हो गई।
ü 'स्वराज' को कांग्रेस के एक कार्यक्रम के रूप में स्वीकार किया गया।
स्वराजवाद की आवश्यकता
ü स्वराज इस दल का उच्च आदर्श था।
ü इसके निर्माण के समय लोगों में इसके विरुद्ध अफवाहें थीं।
ü लोग इसे कांग्रेस विरोधी भी कहने लगे थे।
ü उसे अंग्रेजों का समर्थक भी कहा जाता था।
ü स्वराज दल के लोगों का प्रथम काम इन गलतफहमियों को समाप्त करना था।
ü ब्रिटिश सरकार - जनता के ऊपर नए कर और लोगों की इच्छाओं को कोई महत्त्व नहीं
ü स्वराज दल - विधान सभाओं में प्रवेश सरकार का विरोध करने में अधिक कामयाब हो सकते हैं।
ü सी.आर. दास - परिषदों और विधान सभाओं में हम जनता के अधिकारों की माँग करेंगे।
1.
सभी स्वराजवादी सरकारी नौकरशाही का सहयोग नहीं करेंगे,
2.
सभी सरकारी बिलों का विरोध करेंगे
3.
तथा बजट पास नहीं होने देंगे।
स्वराजवादी और चुनाव
ü 1920 के चुनाव का कांग्रेस ने बहिष्कार किया,
ü 1923 और 1926 के चुनावों में स्वराज दल ने भाग लिया।
ü 1923 के चुनाव की तैयारी स्वराज दल अच्छी तरह से नहीं कर सका।
ü इसका अंतिम उद्देश्य स्वराज प्राप्त करना था।
ü स्वराज दल -
इंग्लैंड में बैठे अधिकारियों को भारत की परिस्थितियों के बारे में जानकारी नहीं है,
ü इसलिए संविधान बनाने का अधिकार भारतीयों को होना चाहिए।
ü 1930 के दशक में राष्ट्रीय आंदोलन में केन्द्रीय विधान सभाओं की मांग रखी गई।
ü स्वराज दल - परिषदों या विधान सभाओं में कोई पद नहीं लेंगे और ये पद कांग्रेस के सदस्यों को सौंप देंगे।
ü चुनाव का प्रबंध विभिन्न प्रांतों में सी. आर. दास व विट्ठलभाई को दिया गया।
ü स्वराज दल को चुनाव में अच्छी उपलब्धि मिली, परंतु यह उनके आशा के अनुरूप नहीं थी।
ü संयुक्त प्रान्त बाम्बे और बंगाल में स्वराज दल ने अकेले बहुमत प्राप्त किया।
ü कुल मिलाकर इस दल ने 234 सीटें प्राप्त करें
ü इस प्रकार स्वराज दल ने कानूनी राजनीति में प्रवेश किया।
विधान सभाओं और परिषदों में स्वराजवादी
ü मोतीलाल नेहरू केंद्रीय विधान सभा में विपक्ष के नेता बने।
ü उन्होंने अन्य भारतीय सदस्यों से स्वराज मुद्दों के लिए समर्थन मांगा।
ü उन्होंने घोषणा की कि उदारवाद, स्वावलंबी और स्वराजवाद के सदस्यों में कोई भिन्नता नहीं है।
ü प्रथम विधानसभा अधिवेशन के समय गाँधी जी जेल में थे।
ü स्वराज दल ने अन्य सदस्यों के समर्थन से उनको जेल से मुक्त करवाया।
ü 1924 में मोतीलाल ने नेहरू ने अन्य चुने हुए सदस्यों की मदद से सरकार से 1919 के अधिनियम में संशोधन की मांग की। इसमें भी उसे सफलता मिली।
ü 1926 में स्वराज दल ने राजनीतिक कैदियों और निकासित सदस्यों को मुक्त करने की माँग की।
ü इसमें चुने हुए अन्य सदस्यों ने समर्थन नहीं दिया। फलस्वरूप इसमें उन्हें सफलता नही मिली।
ü 1923-26 तक निरन्तर स्वराज दल के नेता सरकार के बजट और प्रस्तावों का विरोध करते रहे।
ü अंततः विधानसभा बहिष्कार करने का निर्णय किया गया।
ü यहीं कार्यवाहियां परिषदों में भी की गयीं।
स्वराज पार्टी की मुख्य उपलब्धियाँ
ü स्वराज पार्टी के नेता विधान सभाओं और परिषदों के कार्यों में विशेष परिवर्तन नहीं करा सकें।
ü स्वराज पार्टी - राष्ट्रीय आंदोलन की वृद्धि में विशेष योगदान दिया।
ü सर्वप्रथम सभी राष्ट्रीय तत्वों को एक-दूसरे के निकट लाने में सफल हुए।
ü 1920 में मोतीलाल नेहरू ने विभिन्न औपनिवेशिक विरोधी राजनीतिक दलों का सहयोग प्राप्त किया।
ü विधानसभाओं में अन्य दलों का समर्थन प्राप्त किया।
ü स्वराजवादियों ने स्वराज की माँग को लोकप्रियता प्रदान की।
ü वे लोगों में जनचेतना लाए और मीडिया में भी उनकी पर्याप्त माँग थी।
ü उन्होंने चुनावों में बहुत अधिक सफलता प्राप्त की।
ü कई बार स्वराजवादियों का समर्थन न मिलने से सरकार को बिल वापस लेना पड़ा।
1926 के बाद स्वराजवाद का पतन, बिखराव
ü 1926 के बाद स्वराज दल का राजनीतिक पतन शुरू हो गया।
ü असहयोग आंदोलन के स्थगन के साथ देश में सांप्रदायिक दंगे शुरू हो गये।
ü इन परिस्थितियों में स्वराज तालमेल टूटने लगा।
ü इससे पार्टी कमजोर होने लगी।
ü 1925 में सी.आर. दास की मृत्यु के बाद स्वराज दल के सदस्यों में भी मेलजोल खत्म हो गया
ü कई चुने हुए सदस्य विधानसभा में पद ग्रहण करने लगे।
ü जैसे विट्ठलभाई पटेल केंद्रीय विधान सभा में अध्यक्ष बन गए।
ü साइमन कमीशन के आगमन के साथ स्वराजवादी लुप्त हो गए।
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परिषदों के भीतर व बाहर प्रतिरोध
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By Vishwajeet Singh