Unit - 1 EARLY HUMAN SOCIETIES Part-1 & 2
( प्रारंभिक मानव समाज )
चार्ल्स डार्विन ने 1860 में जैविक क्रम विकास का सिद्धान्त
नरवानर रूप से मानव बनने में लगभग 60 मिलियन वर्ष लगे।
जैव आनुवंशिकी आँकड़ों के आधार पर लगभग 5-6 मिलियन वर्ष पूर्व होमिनिडे शाखा पौंगिडे से अलग हुए थे।
पौंगिडे पश्चिमी और मध्य अफ्रीका के नम क्षेत्र में सीमित हो गए,
होमिनिडे पूर्व और दक्षिण अफ्रीका के बड़े और खुले परिवेश में रहने लगे।
नए परिवेश के अनुकूल वे अपने को ढालने लगे और मुख्य रूप से उनके अवशेष उसी क्षेत्र में पाए जाते हैं।
यही होमिनिडे 3.4 से 4 मिलियन वर्ष पूर्व दो पैरों पर चलने लगे थे,
जो मनुष्य बनने की प्रक्रिया का एक सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण चरण था।
खड़े होकर चलने से होमिनिडे की शारीरिक बनावट में परिवर्तन आया।
3.5 मिलियन वर्ष से लेकर 1.5 मिलियन वर्ष तक आस्ट्रेलोपिथेकस और होमो के बीच अन्तर पैदा हुआ।
होमो हेबिलिस इनमें से एक विकसित हुई शाखा थी,
जिन्होंने सम्भवतः सबसे पहले औजार बनाए।
ये मुख्य रूप से अफ्रीकावासी मनुष्य के क्रमिक विकास के अगले चरण को होमोइरेक्टस के नाम से जाना जाता है,
जिसकी शारीरिक बनावट की कुछ खास विशेषताएँ थीं।
इनके प्राप्त कंकलों को देखकर लीकी का अनुमान है कि ये सम्भवतः 50 लाख वर्ष से लेकर 3 लाख वर्ष के बीच रहे होंगे।
उनका यह भी कहना है कि उनके कंकाल निश्चित रूप से आधुनिक थे।
होमो हेबिलिस की तुलना में उनका मस्तिष्क भी बड़ा था।
उनकी हड्डियाँ भी आधुनिक मानव की तरह बनने लगी थीं,
परन्तु अभी उनका पूरी तरह विकास नहीं हो सका था।
होमोइरेक्टस से होमोसेपियन्स तक की यात्रा धीरे-धीरे हुई और अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग समय में यह विकास हुआ
उनकी शारीरिक बनावट भी अलग-अलग ढंग से विकसित हुई।
विभिन्न क्षेत्रों में होमोसेपियन्स का क्रमिक विकास एक लगातार होने वाली प्रक्रिया के तहत हुआ।
यूरोप में और कुछ अन्य क्षेत्रों में उनकी एक अलग शाखा विकसित हुई, जिसे निएन्डरथैलेनिस कहा गया।
लगभग 35 हजार वर्ष पूर्व उनका समूल नाश हो गया था और उनका कोई वंशज नहीं बचा था।
होमो इरेक्टस से होमोसेपियन्स सेपियन्स के क्रम विकास की प्रक्रिया के बारे में लीकी कहते हैं कि –
होमोइरेक्टस आबादी पूरे विश्व में विकास और प्रौद्योगिकी के दोहन पर अधिक-से-अधिक आश्रित होते चले गए और उनसे उनकी प्रक्रिया तय हुई जिसके फलस्वरूप ये प्रजातियाँ होमोसेपियन्स की ओर अग्रसरित हुईं।
होमोसेपियन्स की आरम्भिक आबादी से होमोसेपियन्स सेपियन्स यानी आधुनिक मानव का जन्म हुआ।"
आधुनिक मानव का विकास होमिनिड के क्रमिक विकास की एक लम्बी और जटिल प्रक्रिया से हुआ।
मानव के विकासक्रम के साथ उनकी कपाल क्षमता में भी वृद्धि होती गई।
आस्ट्रेलोपिथेकस के मस्तिष्क का आकार लगभग 400-500 सीसी था
जो होमोहेबिलिस में बढ़कर 700 सीसी हो गया,
जबकि होमोइरेक्टस में यह (900-1100 सीसी था,
जो अन्ततः होमोसेपियन्स सेपियन्स में बढ़कर 1250-1450 सीसी हो गया।
होमो सेपियन्स सेपियन्स का विकास अफ्रीका में
लगभग 200,000 और 130,000 साल पहले हुआ,
जहां से दुनिया के बाकी हिस्सों में अन्य
होमिनिडों का विस्थापन हुआ ।
लगभग 60,000 साल पहले अफ्रीका
आधुनिक मनुष्यों का घर था,
जबकि अन्य होमिनिड्स, विशेष रूप से होमो
इरेक्टस और निएंडरथल, क्रमशः एशिया और यूरोप में थे।
Part-2
शिकार संग्रह जीवन-शैली से कृषि जीवन-शैली में संक्रमण
· शिकारी-संग्रहकर्ता संस्कृति एक प्रकार की निर्वाह जीवन शैली है
· जो जानवरों के शिकार और मछली पकड़ने और भोजन के लिए
जंगली वनस्पति और शहद जैसे अन्य पोषक तत्वों की तलाश पर निर्भर
करती है।
· प्रारम्भिक मानव द्वारा शिकारी-संग्रहकर्त्ता से कृषक बनने की प्रक्रिया कोई अचानक घटित होने वाली घटना नहीं थी।
· जब विश्वव्यापी जलवायु में परिवर्तन हुआ, तो इसका प्रभाव शिकारी-संग्रहकर्ता की जीवन-शैली पर भी पड़ा।
· साथ ही पौधों एवं पशुओं की प्रकृति में भी अन्तर आया।
· समय के साथ शिकार और संग्रह की तकनीक भी विशेषीकृत होती चली गई
· आदिमानवों को पौधों एवं पशुओं की गहरी जानकारी होती गई, जो कृषि के प्रारम्भ के लिए एक अनिवार्य पहलू था।
· इसी सन्दर्भ में बिनफोर्ड एवं केंट फ्लैनरी जैसे विद्वानों ने भी शिकार और संग्रह से कृषि की ओर संक्रमण के लिए क्रमागत विकास का सिद्धान्त ही अपनाया।
· यहाँ
तक कि डार्विन ने भी कृषि की शुरुआत की एक क्रमिक प्रक्रिया के रूप में ही व्याख्या की थी।
· फ्लैनरी ने खाद्य उत्पादन की ओर संक्रमण के तरीके का विश्लेषण करते हुए इसे मुख्यतः तीन अवधारणाओं पर आधारित माना है-
(i) खाद्य उत्पादन के पूर्व शिकारी-संग्रहकर्त्ता की आबादी में बढ़ोतरी हुई थी।
(ii) खाद्य उत्पादन का आरम्भ उन लोगों में हुआ, जहाँ प्रकृति बहुत अनुकूल नहीं थी।
(iii) खाद्य उत्पादन के कई केन्द्र थे तथा खेती की शुरुआत से
· पूर्व ये लोग किसी विशिष्ट परिवेश के आदी नहीं थे।
· इस प्रकार केंट फ्लैनरी ने कृषि की ओर संक्रमण हेतु व्यवस्था सिद्धान्त का प्रतिपादन किया।
· इनके अनुसार मौसम में बदलाव के साथ शिकारी-संग्रहकर्त्ता एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमा करते थे,
· जिस कारण उन्हें विभिन्न प्रकार की वनस्पतियों एवं पशुओं का ज्ञान होता गया।
· जहाँ प्रारम्भ में शिकारी-संग्रहकर्ता घूम-घूमकर भोजन इकट्ठा किया करते थे, वहीं अब वे लोग एक जगह रुके रहकर अन्न उत्पादन करने लगे।
· कोलिन रेनफ्रियू ने भी सांस्कृतिक परिवर्तन की व्याख्या करते हुए व्यवस्था सिद्धान्त को स्वीकार किया है।
· एम. कोहेन के अनुसार कृषि के आरम्भ के लिए पर्यावरणीय परिवर्तन की अपेक्षा मनुष्य की चाहत का विशेष योगदान था।
· इनका यह भी मानना है कि कृषि का विकास जनसंख्या वृद्धि के कारण ही हुआ।
· इनके अनुसार यह, अतिरिक्त भोजन उपलब्ध करवाने के कारण ऐसा नहीं हुआ,
· बल्कि सघन खेती की शुरुआत अतिरिक्त श्रम लगने के कारण हो सकती थी और इसी के कारण खेती शुरू की गई।
· इसलिए खाद्यान्न उत्पादन के लाभों को जानते हुए भी खेती करने के लिए एक खास आबादी का होना जरूरी था।
· जैसे खेती करने के लिए अधिक जमीन की आवश्यकता पड़ने पर पेड़ों को काटने, जलाने तथा मैदान साफ करने का काम करना पड़ता - और इन सब कार्यों के लिए पर्याप्त श्रम की आवश्यकता थी।
· कोहेन ने माना कि शिकारी-संग्रहकर्त्ता समूह में जनसंख्या की वृद्धि अचानक नहीं हुई, बल्कि यह लगातार चलने वाली प्रक्रिया थी।
· इस वृद्धि के फलस्वरूप क्षेत्रों का विस्तार हुआ
· लोग ऐसे क्षेत्रों का भी उपयोग करने लगे जो अब तक अछूत पड़े थे।
· धीरे-धीरे लोगों ने अपनी जरूरतों को खेती द्वारा ही पूरा करना प्रारम्भ कर दिया।
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By Vishwajeet Singh