Unit - 12 (चीन)
Ø चीनी राज्य 221 ई.पू. में अस्तित्व में आया।
Ø शासक किन, - चीन को प्रशासनिक इकाइयों के रूप में विभाजित किया
Ø नौकरशाही की स्थापना
Ø खुद को सम्राट घोषित किया।
Ø चीन में सम्राट् की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती थी।
Ø इसे स्वर्णपुत्र कहा जाता था।
Ø यह शासन सत्ता का सर्वोच्च होता था।
Ø चीन के बाहर की प्रशासनिक सीमाओं के अन्तर्गत भी जनता उसका सम्मान करती थी।
Ø बाहर की प्रशासनिक सीमाओं पर भी सम्राट् अप्रत्यक्ष रूप से शासन करता था।
Ø नौकरशाही का शासन पर प्रत्यक्ष नियंत्रण होता था।
Ø चीन में नौकरशाही एक महत्त्वपूर्ण व्यवस्था थी,
Ø जिसकी नियुक्ति परीक्षा के आधार पर होती थी।
Ø नौकरशाही को कानूनों और नियमों के आधार पर काम करना होता था
Ø जैसे-इनकी नियुक्ति, पदोन्नति, स्थानांतरण और यहाँ तक कि चाल-चलन और व्यवहार भी पूरी तरह नियमों के अन्तर्गत परखे जाते थे।
Ø इस नौकरशाही में काम करने वाले व्यक्ति के लिए दण्ड भी सामान्य नागरिकों की तरह ही लागू होते थे।
Ø चीन में इनको - दण्डित करने का कोई उदाहरण नहीं मिलता।
Ø ये नौकरशाह अपने मामलों के विशेषज्ञ होते थे
Ø नौकरशाह प्रशासन के प्रमुख पदों पर नियुक्त
Ø चीन में नौकरशाही को नियुक्ति कड़ी परीक्षाओं की एक श्रृंखला द्वारा की जाती थी।
Ø इनके कन्फ्यूशियाई ज्ञान की परीक्षा ली जाती थी।
Ø इस परीक्षा को लेने का एक महत्त्वपूर्ण पक्ष यह है कि इसमें सभी लोग बैठ सकते थे।
Ø किसी भी व्यक्ति को बिना कोई भेदभाव बरते इस परीक्षा को देने का मौका दिया जाता था।
Ø यह परीक्षा हर तीसरे वर्ष आयोजित की जाती थी।
Ø परीक्षाओं की तैयारी करने के लिए विद्यार्थियों को कड़ा परिश्रम करना पड़ता था
Ø उन्हें 20 वर्षों का समय लगता था।
Ø इस परीक्षा को पास करने से वह पदाधिकारी बनता था,
Ø समाज में उसकी प्रतिष्ठा भी बढ़ जाती थी।
Ø सम्राट् और नौकरशाह दोनों को एक-दूसरे की जरूरत बनी रहती थी।
Ø सम्राट् को प्रशासन चलाने के लिए नौकरशाहों की आवश्यकता होती थी,
Ø नौकरशाहों को अपनी स्थिति और परीक्षा पद्धति को वैध बनाने के लिए सम्राट् की आवश्यकता होती थी।
Ø नौकरशाहों और सम्राट् के बीच खींचातानी की स्थिति
Ø सम्राट् इन नौकरशाहों को अपने नियंत्रण में रखना चाहता था
Ø इन्हें शक्तिशाली बनने से रोकता था।
Ø पदाधिकारियों के लिए कुछ नियम भी बनाये गये थे,
Ø जैसे- - वह अपने जिले में नौकरी नहीं कर सकता था और एक पद पर तीन सालों से अधिक नहीं रह सकता था।
Ø सम्राट् के प्रमुख दायित्वों में राजनैतिक-सामाजिक व्यवस्था को बनाये रखना
Ø प्राकृतिक आपदाओं से जनता की रक्षा करना आदि प्रमुख उत्तरदायित्व होते थे।
Ø सैनिक मामलों में सम्राट् महत्त्वपूर्ण तथा सर्वोच्च होता था।
Ø सभी अधिकारियों की नियुक्ति तथा नियंत्रण
Ø सम्राट् प्रत्यक्ष रूप से लगभग 18 प्रांतों पर अपनी नौकरशाही नियन्त्रित नहीं की
Ø सीमांत प्रदेश अपने ढंग से सत्ता चलाते थे
Ø इन प्रांतों के मामले में दखल नहीं दिया जाता था,
Ø जब तक कि वे चीनी सम्राट् की सत्ता को खुली चुनौती न दें।
Ø 11वीं शताब्दी में सम्राट् की स्थिति में परिवर्तन आये।
Ø सम्राट् चाहता था कि पूरी सैनिक शक्ति उसके हाथों में केन्द्रित रहे।
Ø कोई भी क्षेत्रीय विद्रोह न पनपे।
Ø चीन की राजनैतिक व्यवस्था को निरंकुश या तानाशाही भी कहा जा सकता है।
Ø वह स्वर्ग और पृथ्वी के बीच मध्यस्थ माना जाता था,
Ø उस पर प्रकृति को नियंत्रित करने की भी जिम्मेदारी होती थी।
Ø बाढ़, भूकंप प्राकृतिक आपदाओं को अपशगुन माना जाता था
Ø लोग यह अनुमान लगाते थे कि सम्राट् अपने कर्त्तव्यों का ठीक से निर्वहन नहीं कर रहा है।
Ø चारों ओर विद्रोह होने लगते थे और यह समझा जाता था कि वह स्वर्ग से प्राप्त शासन करने के अधिकार खो चुका है।
Ø सभी सम्राट् और राजघराने अपनी स्थिति की स्थिरता को भली-भाँति जानते थे और वे कोई भी निरंकुशता का काम करने से डरते थे।
Ø चीन का समाज मुख्यतः किसानों का ही समाज था,
Ø खेत जोतने वाले खेतिहर किसान किसी तरह से कृषि दास नहीं कहे जा सकते,
Ø जमीन उनकी अपनी होती थी
Ø वे राजा को कर देते थे।
Ø समय के साथ-साथ करों का बोझ बढ़ा,
Ø खेत बँटते गये और छोटे हो गये
Ø किसान बड़े भूमिपतियों के यहाँ काश्तकार के रूप में कार्य करने को मजबूर हो गये।
Ø इस रूप में इनका शोषण बढ़ा।
Ø उनसे उपज का आधा हिस्सा और इससे अधिक भी ले लिया जाता था।
Ø केन्द्रीय नियंत्रण कमजोर होने के कारण पदाधिकारियों के शोषण को रोकने के लिए मुश्किलों का सामना करना पड़ा।
Ø किसान खेती छोड़कर चोरी-डकैती करने लगा।
Ø 11वीं से लेकर 13वीं शताब्दी के बीच चीन की कृषि अर्थव्यवस्था में परिवर्तनों
o आंतरिक और विदेशी व्यापार बढ़ा,
o जिससे वाणिज्य उपकरण का विकास हुआ,
o कागजी मुद्रा का प्रचलन हुआ,
o बड़े व्यापारिक घरानों का उदय हुआ।
o शहरों एवं नगरों में तेजी से वृद्धि हुई, सा
o क्षरता का तेजी से विकास हुआ।
Ø एक शहरी संस्कृति विकसित हुई, जिससे बाद में एक ऐसा चीनी समाज विकसित हुआ जो अपने पहले के समाज से उत्तम था।
Ø 10वीं शताब्दी की आधी शताब्दी तक गृहयुद्ध चलने के बाद चीन का तांग वंश खत्म हो गया।
Ø सभी बड़े अभिजात्य वर्ग के परिवारों के सदस्यों की हत्या कर दी गई।
Ø भू-संपदाओं को भी नष्ट कर दिया गया।
Ø इसके बाद जो स्थिति उभरी, उसने साम्राज्य में सैन्य शक्ति अपने हाथों में लेने का प्रयत्न किया।
Ø इसके बाद चीन में जो वर्ग उभरा, उसे भद्रजन कहा जाता है।
Ø इस वर्ग के पास भू-स्वामित्व, शिक्षा और सरकारी नौकरी होती थी।
Ø जिससे वे अपनी शाही सेवा में सफल होते थे, जिससे ये लोग भी प्रतिष्ठा पा जाते थे।
Ø शाही परीक्षाओं में किसी भी वर्ग को बैठने का अधिकार प्राप्त था,
Ø इन परीक्षाओं को पास करके वह भी प्रतिष्ठित जनों में अपनी गिनती करवा सकता था।
Ø इन भद्रजनों का चीनी समाज पर वर्चस्व कायम हो गया
Ø इससे राजनैतिक शक्ति को भी बल मिला।
Ø स्थानीय स्तर पर कानून और व्यवस्था बनाये रखने का काम औपचारिक रूप से ये भद्रजन ही किया करते थे।
Ø चीनी समाज में व्यक्ति की अपेक्षा परिवार या कुल को चीनी समाज का आधार माना जाता था।
Ø चीनी समाज पितृसत्तात्मक था।
Ø लोगों के घर काफी बड़े नहीं होते थे।
Ø परिवार संयुक्त होते थे
Ø अर्थात् एक ही छत के नीचे परिवार का मुखिया और उसके बेटे का परिवार भी खुशी-खुशी रहते थे।
Ø इस संयुक्त परिवार में धार्मिक प्रथाएँ भी अपना महत्त्व रखती थीं।
Ø कन्फ्यूशियसवाद में चीनी परिवारों की बहुत गहरी आस्था थी।
Ø इस धर्म में ईश्वर के अस्तित्व, मृत्यु के बाद जीवन है या नहीं आदि प्रश्नों पर विचार नहीं किया गया है।
Ø चीनी लोग अलौकिक और अदृश्य शक्तियों में भी विश्वास रखते थे।
Ø चीन में कन्फ्यूशियसवाद छठी शताब्दी ई.पू. में जन्मे दार्शनिक कन्फ्यूशियस के उक्त उपदेशों के कारण जन्मा।
Ø इस उदय के पीछे तात्कालिक कारण भी थे।
Ø चारों ओर अशांति फैली हुई थी।
Ø सामाजिक तथा राजनैतिक संस्थाएँ टूट रही थीं।
Ø इस माहौल में कन्फ्यूशियस ने इस अवस्था से मुक्ति दिलाने और व्यवस्था तथा नैतिक मूल्यों को पुनर्स्थापित करने पर जोर दिया।
Ø उसके दर्शन का केन्द्रबिंदु यह था कि बच्चों में नैतिक पुरुष का निर्माण करके इस उद्देश्य की प्राप्ति की जा सकती है,
Ø यदि कामकाज सही व्यक्तियों के हाथ में होगा, तो समाज में शांति सद्भावना पुनः लौट सकेगी।
Ø कन्फ्यूशियस के जीवनकाल में ही उसके कई शिष्य बने
Ø इनकी विचारधारा से चीनियों के सोचने का ढंग, आचरण और उनकी प्रमुख संस्थाओं में आमूल-चूल परिवर्तन किया।
Ø इसके उपदेशों द्वारा चीनी व्यापारियों को सकारात्मक और सक्रिय रूप मिला।
Ø शिक्षा और सार्वजनिक सेवा पर बल दिया गया।
Ø व्यक्ति के सामाजिक उत्तरदायित्व को बल मिला।
Ø ताओ धर्म और कन्फ्यूशियसवाद लगभग एक ही समय में चीनी समाज में उभरे।
Ø इनकी शुरुआत एक साधारण आध्यात्मिक दर्शन के रूप में हुई।
Ø ताओ धर्म के संस्थापक लाओ जी थे।
Ø कन्फ्यूशियसवाद और ताओ धर्म में अंतर था।
Ø ताओ धर्म का सामाजिक या राज्य या नैतिक मूल्य से कोई लेना-देना नहीं था बल्कि प्रकृति, सहजता, जीवन के प्रति आनंद इसका दृष्टिकोण था।
Ø बौद्ध धर्म के संबंध में भारत और चीन का गहरा संबंध था।
Ø पहली शताब्दी ई. के आसपास भारत से बौद्ध धर्म चीन आया और धीरे-धीरे फैलता गया।
Ø इसे चीनी शासकों का संरक्षण प्राप्त हुआ।
Ø बौद्ध धर्म काफी ताकतवर हो गया।
Ø चीन में बौद्ध धर्म की महायान शाखा का ज्यादा प्रभाव रहा, जिसने संसार में व्याप्त दुख की प्रकृति का एक ठोस दार्शनिक उदाहरण प्रस्तुत किया।
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By Vishwajeet Singh