हड़प्पा बस्तियों का विस्तार और संरचना
· विश्व की प्राचीनतम सभ्यता
· साहित्यिक स्रोतों से कोई जानकारी उपलब्ध नहीं
· जानकारी का प्रमुख स्रोत पुरातात्विक
· बस्तियों का विस्तृत क्षेत्र में फैलाव
· नगरों का अध्ययन - जनसंख्या का घनत्व, विशाल स्मारके भवन, श्रम के संगठन, शिल्प उत्पादन आदि के आधार पर किया गया
· हड़प्पा बस्तियां - पंजाब सिंध और उनकी सहायक नदियों के किनारे गुजरात के सौराष्ट्र और कच्छ आदि में है
· नगरीय केंद्रों की संरचना
· किला और नगर दुर्ग
· किलेबंदी
हड़प्पा बस्तियों का विस्तार
· हड़प्पा बस्तियां - भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तर पश्चिम भाग में है
· अधिकांश बस्तियां पंजाब और सिंध में है
· सहायक नदियों की घाटी सतलुज यमुना दोआब में स्थित है
· बस्तियों का फैलाब - गुजरात के कच्छ और सौराष्ट्र, पंजाब के पर्वतीय तराई तथा उत्तर पूर्वी अफगानिस्तान तक फैली है
· नदी के आसपास अत्यधिक विकसित क्षेत्र
· पानी की आवश्यकता की पूर्ति के लिए नदी के आसपास बसावटें
· गेगरी पोसेल - रावी नदी के तट पर हड़प्पा के समीप बसावटों की कमी रही होगी
· क्योंकि यह क्षेत्र कृषि की अपेक्षा पशुपालन और चरागाह कार्य के लिए अधिक अनुकूल था
· मोहनजोदड़ो, हड़प्पा, गनवेरीवाला, राखीगढ़ी आदि में बसावटे बड़ी है
हड़प्पा नगरों की संरचना - दीवारें, स्थान और चबूतरे
· मोहनजोदड़ो से प्राप्त साक्ष्य
· यहां 2 टीले हैं जो 150 मीटर के क्षेत्र में अलग किए गए हैं
· दुर्गा और निचला शहर
· लोथल में ऊपरी क्षेत्र को दुर्ग नगर कहा गया
· कच्छ , सुरकोटड़ा में निचला शहर
· कच्छ में धौलावीरा में एक विभिन्न प्रकार का पैटर्न दिखाई देता है
· जिसमें 3 भिन्न खंड है
· किला दुर्ग, नगर शब्दों का प्रयोग उच्च क्षेत्र में स्थित रक्षित इकाइयों के लिए हुआ
· गढ़ और दुर्ग प्राचीर ऐसे स्थान थे जहां विशिष्ट सार्वजनिक कृत्य किए जाते हैं जहां आम जनता रहती थी
· अधिकांश हड़प्पा बस्तियां प्राचीर से गिरी थी
· प्रतिरक्षा, प्राकृतिक आपदाओं से सुरक्षा और सुरक्षा प्रतिरोध के लिए मजबूत प्राचीर का निर्माण
· मोहनजोदड़ो में शिल्पकाय चबूतरे बाढ़ से सुरक्षा के लिए थे
· हड़प्पा में यह चबूतरे सुखाए गई ईटों से निर्मित है
· छोटी बस्तियों में भी चबूतरों का निर्माण
योजना का प्रश्न
· नगरवाद को दो तरीकों से समझा जा सकता है-
· रैम्प विधि और स्टेप विधि
· रैम्प विधि के अंतर्गत - एक गांव से शहर में प्राकृतिक विकास की परिकल्पना है,
· जिसमें धीरे-धीरे राजनीतिक केन्द्र, आर्थिक बाजार और धार्मिक अनुष्ठान हो सकता है।
· स्टेप विधि - एक नगरीय केन्द्र के अचानक विकास और कई मामलों में नए नगरीय केन्द्र के तीव्र सृजन की कल्पना करती है।
· योजना में चबूतरे बताते हैं कि ये संभवतः इसको हड़प्पा नगर के निर्माण से पूर्व इसकी योजना के अंग बने होंगे।
· सड़कों और गलियों विशेषकर 'ग्रिडयोजना' के माध्यम से की जा सकती है।
· मोहनजोदड़ो में उत्तर-दक्षिण की सड़कें, पूर्व-पश्चिम सड़कों की तुलना में अधिक स्पष्ट हैं।
· नागरिक सुविधाओं के प्रावधान
· पक्की ईंटों से बनी नालियों की विस्तृत प्रणाली
· नालियां नगर के मुख्य मार्गों के साथ बनी थीं
· सार्वजनिक नालियों को घर की नालियों से जोड़ा गया
· निकास प्रणाली की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता गंदे जल के गड्ढों और मेनहॉल की व्यवस्था
· हड़प्पा नगरों में पेय जल की व्यवस्था
· अनेक कुएं का निर्माण
· लगभग प्रत्येक घर में एक कुआं घर के मुख्य दरवाजे के पास होता था।
· भवन निर्माण में योजना का एक पहलू मानक आकार की ईंट का प्रयोग
· मोहनजोदड़ो में पक्की ईंट का प्रयोग
· लोथल की नगर योजना उत्कृष्ट
स्थान का प्रयोग : गैर-घरेलू
· हड़प्पा संस्कृति केन्द्रों में स्थानों को दो श्रेणियों में बांटा जा सकता है-घरेलू और गैर-घरेलू ।
· दुर्ग में सार्वजनिक स्थापत्य को गैर-घरेलू प्रकृति के रूप में स्वीकार किया गया है,
· परन्तु निचले शहर में घरेलू संरचनाओं के साथ अन्य संरचनाएं भी थीं।
· मोहनजोदड़ो में विशाल स्नानागार, हड़प्पा में अन्नागार आदि विशेषीकृत कृत्यों के केन्द्र हैं।
· दुर्ग विशेषीकृत सार्वजनिक कार्य-बड़े पैमाने पर भंडारण सुविधाओं से लेकर सब ओर धार्मिक अनुष्ठान तक के लिए प्रयुक्त होने वाले स्थान थे।
· इसमें धार्मिक अनुष्ठान कराने वालों के आवास भी थे। राखीगढ़ के दुर्ग में पोडियन या चबूतरे पर हवन कुंडों की एक कतार मिली है।
· लोथल में भी नगर दुर्ग में हवन कुंड मौजूद थे।
· सड़कों और गलियों को भी सार्वजनिक या गैर-घरेलू स्थान के रूप में स्वीकार किया था,
· जो विभिन्न बस्तियों से होकर गुजरती थीं।
· ये अनेक मामलों में संचार के अच्छे माध्यम थे। मोहनजोदड़ो में इसके स्पष्ट प्रमाण मिले हैं कि स्थान का अन्य घरेलू प्रयोग कब्रिस्तान था।
· हड़प्पा से पूर्व में मृतक को निवास में ही दफनाया जाता था।
· आगे हड़प्पाई नगरों में निवास से दूर स्थान पर दफनाया जाता था।
· कच्छ में धौलावीरा में सार्वजनिक स्थल का प्रयोग सार्थक रूप में किया गया।
· प्राचीर के निकट विशाल जलाशय या तालाब बनाया था।
· कुछ तालाबों की दीवारें पक्की होती थीं
· और जलाशय में जाने के लिए सीढ़ियां होती थीं।
· लोथल में एक बड़े जल संग्रह का प्रयोग 'गोटी बड़ा' के रूप में किया जाता था।
· मोहनजोदड़ो के विशाल स्नानागार का प्रयोग धार्मिक अनुष्ठान के रूप में किया जाता था।
· धौलावीरा के दुर्ग में स्थान का प्रयोग स्टेडियम के रूप में होने की संभावना व्यक्त की गई है
स्थान का प्रयोग : घरेलू
· हड़प्पा नगरों में स्थान का प्रयोग बड़े पैमाने पर किया गया है।
· यहां कई घरों में खुले स्थान के रूप में आंगन छोड़ा गया है
· और इसके चारों ओर कमरे बने हैं।
· कमरों की अवस्थिति और उनमें प्रवेश करने के तरीके के आधार पर इन्हें दो प्रकारों में बांटा गया है-
· पारगमन और अंतस्थ ।
· पारगमन कमरों में एक से अधिक द्वार थे,
· जबकि अंतस्थ कमरे में एक द्वार होता था; जैसे- शौचालय या स्नानागार।
· सीढ़ियों की उपस्थिति से ज्ञात होता है कि एक से अधिक तल के मकान भी बनते थे।
· अधिकांश घरों में एक स्नानागार होता था,
· जिसकी नालियां सड़क की नालियों से जुड़ी हुई थीं।
· कुछ स्थलों पर स्थानीकृत विभिन्नताएं दिखाई देती हैं; जैसे-बनावली में पश्चिमी दीवार मोटी थी।
· इससे सटे कक्ष का प्रयोग भण्डारण या तिजोरी के रूप में होता था।
· मोहनजोदड़ो की बसावट में सड़क से सीधे प्रवेश नहीं किया जा सकता था।
· लोथल के घरों में समान पैटर्न नहीं है।
· घरों के बीच खाली स्थान छोड़ना लोथल में अन्य बड़ी नगरीय बसावटों से भिन्न है।
· कई स्थानों पर घर बनाने के लिए कच्ची ईंटों का प्रयोग किया गया है; जैसे- गुजरात में लोथल और रंगपुर में।
· नालियों के निर्माण पक्की ईंटों का प्रयोग किया गया है।
· हड़प्पा और मोहनजोदड़ो में सार्वजनिक भवन बनाने में पकी ईंटों का प्रयोग किया है।
· सुरकोटडा में घर पत्थर से बने हैं,
· परंतु फर्श पर कच्ची ईंटें लगी हैं।
· कुछ दीवारों पर चूने से प्लास्टर किया गया है।
· कमरों की दीवार के साथ सामान रखने के लिए ताक भी बने हैं।
· हड़प्पा नगरों में प्रारम्भ में मोटी दीवार से पतली दीवार बनाने का चलन हुआ।
· हड़प्पा में एक टीले पर चबूतरे के समीप फूस की झोपड़ियां पाई गई थीं।
BY - VISHWAJEET SINGH
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