MHI-10 Lesson-6, (हड़प्पा बस्तियों का विस्तार और संरचना)

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हड़प्पा बस्तियों का विस्तार और संरचना

 


·       विश्व की प्राचीनतम सभ्यता

·       साहित्यिक स्रोतों से कोई जानकारी उपलब्ध नहीं

·       जानकारी का प्रमुख स्रोत पुरातात्विक

·       बस्तियों का विस्तृत क्षेत्र में फैलाव

·       नगरों का अध्ययन - जनसंख्या का घनत्व, विशाल स्मारके भवन, श्रम के संगठन, शिल्प उत्पादन आदि के आधार पर किया गया

·       हड़प्पा बस्तियां - पंजाब सिंध और उनकी सहायक नदियों के किनारे गुजरात के सौराष्ट्र और कच्छ आदि में है

·       नगरीय केंद्रों की संरचना

·       किला और नगर दुर्ग

·       किलेबंदी

 


       हड़प्पा बस्तियों का विस्तार

·       हड़प्पा बस्तियां - भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तर पश्चिम भाग में है

·       अधिकांश बस्तियां पंजाब और सिंध में है

·       सहायक नदियों की घाटी सतलुज यमुना दोआब में स्थित है

·       बस्तियों का फैलाब - गुजरात के कच्छ और सौराष्ट्र, पंजाब के पर्वतीय तराई तथा उत्तर पूर्वी अफगानिस्तान तक फैली है

·       नदी के आसपास अत्यधिक विकसित क्षेत्र

·       पानी की आवश्यकता की पूर्ति के लिए नदी के आसपास बसावटें

·       गेगरी पोसेल - रावी नदी के तट पर हड़प्पा के समीप बसावटों की कमी रही होगी

·       क्योंकि यह क्षेत्र कृषि की अपेक्षा पशुपालन और चरागाह कार्य के लिए अधिक अनुकूल था

·       मोहनजोदड़ो, हड़प्पा, गनवेरीवाला, राखीगढ़ी आदि में बसावटे बड़ी है

 

      हड़प्पा नगरों की संरचना - दीवारें, स्थान और चबूतरे

·       मोहनजोदड़ो से प्राप्त साक्ष्य

·       यहां 2 टीले हैं जो 150 मीटर के क्षेत्र में अलग किए गए हैं

·       दुर्गा और निचला शहर

·       लोथल में ऊपरी क्षेत्र को दुर्ग नगर कहा गया

·       कच्छ , सुरकोटड़ा में निचला शहर

·       कच्छ में धौलावीरा में एक विभिन्न प्रकार का पैटर्न दिखाई देता है

·       जिसमें 3 भिन्न खंड है

·       किला दुर्ग, नगर शब्दों का प्रयोग उच्च क्षेत्र में स्थित रक्षित इकाइयों के लिए हुआ

·       गढ़ और दुर्ग प्राचीर ऐसे स्थान थे जहां विशिष्ट सार्वजनिक कृत्य किए जाते हैं जहां आम जनता रहती थी

·       अधिकांश हड़प्पा बस्तियां प्राचीर से गिरी थी

·       प्रतिरक्षा, प्राकृतिक आपदाओं से सुरक्षा और सुरक्षा प्रतिरोध के लिए मजबूत प्राचीर का निर्माण

·       मोहनजोदड़ो में शिल्पकाय चबूतरे बाढ़ से सुरक्षा के लिए थे

·       हड़प्पा में यह चबूतरे सुखाए गई ईटों से निर्मित है

·       छोटी बस्तियों में भी चबूतरों का निर्माण

 

       योजना का प्रश्न

·       नगरवाद को दो तरीकों से समझा जा सकता है-

·       रैम्प विधि और स्टेप विधि

·       रैम्प विधि के अंतर्गत -  एक गांव से शहर में प्राकृतिक विकास की परिकल्पना है,

·       जिसमें धीरे-धीरे राजनीतिक केन्द्र, आर्थिक बाजार और धार्मिक अनुष्ठान हो सकता है।

·       स्टेप विधि - एक नगरीय केन्द्र के अचानक विकास और कई मामलों में नए नगरीय केन्द्र के तीव्र सृजन की कल्पना करती है।

·       योजना में चबूतरे बताते हैं कि ये संभवतः इसको हड़प्पा नगर के निर्माण से पूर्व इसकी योजना के अंग बने होंगे।

 

·       सड़कों और गलियों विशेषकर 'ग्रिडयोजना' के माध्यम से की जा सकती है।

·       मोहनजोदड़ो में उत्तर-दक्षिण की सड़कें, पूर्व-पश्चिम सड़कों की तुलना में अधिक स्पष्ट हैं।

·       नागरिक सुविधाओं के प्रावधान

·       पक्की ईंटों से बनी नालियों की विस्तृत प्रणाली

·       नालियां नगर के मुख्य मार्गों के साथ बनी थीं

·       सार्वजनिक नालियों को घर की नालियों से जोड़ा गया

·       निकास प्रणाली की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता गंदे जल के गड्ढों और मेनहॉल की व्यवस्था

·       हड़प्पा नगरों में पेय जल की व्यवस्था

·       अनेक कुएं का निर्माण

·       लगभग प्रत्येक घर में एक कुआं घर के मुख्य दरवाजे के पास होता था।

·       भवन निर्माण में योजना का एक पहलू मानक आकार की ईंट का प्रयोग

·       मोहनजोदड़ो में पक्की ईंट का प्रयोग

·       लोथल की नगर योजना उत्कृष्ट

 

       स्थान का प्रयोग : गैर-घरेलू

·       हड़प्पा संस्कृति केन्द्रों में स्थानों को दो श्रेणियों में बांटा जा सकता है-घरेलू और गैर-घरेलू

·       दुर्ग में सार्वजनिक स्थापत्य को गैर-घरेलू प्रकृति के रूप में स्वीकार किया गया है,

·       परन्तु निचले शहर में घरेलू संरचनाओं के साथ अन्य संरचनाएं भी थीं।

·       मोहनजोदड़ो में विशाल स्नानागार, हड़प्पा में अन्नागार आदि विशेषीकृत कृत्यों के केन्द्र हैं।

·       दुर्ग विशेषीकृत सार्वजनिक कार्य-बड़े पैमाने पर भंडारण सुविधाओं से लेकर सब ओर धार्मिक अनुष्ठान तक के लिए प्रयुक्त होने वाले स्थान थे।

·       इसमें धार्मिक अनुष्ठान कराने वालों के आवास भी थे। राखीगढ़ के दुर्ग में पोडियन या चबूतरे पर हवन कुंडों की एक कतार मिली है।

·       लोथल में भी नगर दुर्ग में हवन कुंड मौजूद थे।

·       सड़कों और गलियों को भी सार्वजनिक या गैर-घरेलू स्थान के रूप में स्वीकार किया था,

·       जो विभिन्न बस्तियों से होकर गुजरती थीं।

·       ये अनेक मामलों में संचार के अच्छे माध्यम थे। मोहनजोदड़ो में इसके स्पष्ट प्रमाण मिले हैं कि स्थान का अन्य घरेलू प्रयोग कब्रिस्तान था।

·       हड़प्पा से पूर्व में मृतक को निवास में ही दफनाया जाता था।

·       आगे हड़प्पाई नगरों में निवास से दूर स्थान पर दफनाया जाता था।

·       कच्छ में धौलावीरा में सार्वजनिक स्थल का प्रयोग सार्थक रूप में किया गया।

·       प्राचीर के निकट विशाल जलाशय या तालाब बनाया था।

·       कुछ तालाबों की दीवारें पक्की होती थीं

·       और जलाशय में जाने के लिए सीढ़ियां होती थीं।

·       लोथल में एक बड़े जल संग्रह का प्रयोग 'गोटी बड़ा' के रूप में किया जाता था।

·       मोहनजोदड़ो के विशाल स्नानागार का प्रयोग धार्मिक अनुष्ठान के रूप में किया जाता था।

·       धौलावीरा के दुर्ग में स्थान का प्रयोग स्टेडियम के रूप में होने की संभावना व्यक्त की गई है

 

       स्थान का प्रयोग : घरेलू

·       हड़प्पा नगरों में स्थान का प्रयोग बड़े पैमाने पर किया गया है।

·       यहां कई घरों में खुले स्थान के रूप में आंगन छोड़ा गया है

·       और इसके चारों ओर कमरे बने हैं।

·       कमरों की अवस्थिति और उनमें प्रवेश करने के तरीके के आधार पर इन्हें दो प्रकारों में बांटा गया है-

·       पारगमन और अंतस्थ

·       पारगमन कमरों में एक से अधिक द्वार थे,

·       जबकि अंतस्थ कमरे में एक द्वार होता था; जैसे- शौचालय या स्नानागार।

·       सीढ़ियों की उपस्थिति से ज्ञात होता है कि एक से अधिक तल के मकान भी बनते थे।

·       अधिकांश घरों में एक स्नानागार होता था,

·       जिसकी नालियां सड़क की नालियों से जुड़ी हुई थीं।

·       कुछ स्थलों पर स्थानीकृत विभिन्नताएं दिखाई देती हैं; जैसे-बनावली में पश्चिमी दीवार मोटी थी।

·       इससे सटे कक्ष का प्रयोग भण्डारण या तिजोरी के रूप में होता था।

·       मोहनजोदड़ो की बसावट में सड़क से सीधे प्रवेश नहीं किया जा सकता था।

·       लोथल के घरों में समान पैटर्न नहीं है।

·       घरों के बीच खाली स्थान छोड़ना लोथल में अन्य बड़ी नगरीय बसावटों से भिन्न है।

·       कई स्थानों पर घर बनाने के लिए कच्ची ईंटों का प्रयोग किया गया है; जैसे- गुजरात में लोथल और रंगपुर में।

·       नालियों के निर्माण पक्की ईंटों का प्रयोग किया गया है।

·       हड़प्पा और मोहनजोदड़ो में सार्वजनिक भवन बनाने में पकी ईंटों का प्रयोग किया है।

·       सुरकोटडा में घर पत्थर से बने हैं,

·       परंतु फर्श पर कच्ची ईंटें लगी हैं।

·       कुछ दीवारों पर चूने से प्लास्टर किया गया है।

·       कमरों की दीवार के साथ सामान रखने के लिए ताक भी बने हैं।

·       हड़प्पा नगरों में प्रारम्भ में मोटी दीवार से पतली दीवार बनाने का चलन हुआ।

·       हड़प्पा में एक टीले पर चबूतरे के समीप फूस की झोपड़ियां पाई गई थीं।


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BY - VISHWAJEET SINGH

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