MHI - 08 LESSON - 01 (प्रकृति मानव अंतर्संबंध)

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       प्रकृति मानव अंतर्संबंध

 

  पाषाण काल तथा मध्य पाषाण काल में प्रकृति मनुष्य के अंतर्संबंध

 

§  औजारों के रूप में पहले पत्थर के टुकड़ों का उपयोग

§  अन्य सुलभ प्रकृतिक चीजों का इस्तेमाल

§  आरंभिक काल में मानव जीवनयापन के लिए शिकार एवं कंदमूल संग्रहण पर निर्भर

§  केवल शारीरिक विकास मानव विकास की व्याख्या नहीं

§  पत्थर के औजारों का प्रमुख रूप से प्रयोग

§  औजारों का प्रयोग वृक्षों को काटने, कंदमूल को तोड़ने, लकड़ी चीरने, शहद की प्राप्ति आदि के लिए उपयोग

§  मूल औजार पुरापाषाण काल से संबंधित था

§  शल्क औजार जो मध्य पाषाण काल से संबंधित था

§  कुल्हाड़ी सबसे महत्वपूर्ण औजार

§  हाथ की कुल्हाड़ी का उपयोग मूल रूप से भोजन के रूप में मांस को काटने के लिए होता था

§  आदिमानव प्रकृति के अनुसार प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग अपने जीवनयापन के लिए किया

§  पाषाण कालीन अवस्था के बाद औजारों में महत्वपूर्ण बदलाव

§  औजारों धारदार एवं सूक्ष्म रूप में उपलब्धता

§  औजार उद्योग पर मानव का अधिक नियंत्रण

§  जानवर की हड्डी, सींग, बा‌‍‌ॅस तथा लकड़ी का प्रयोग प्रचलन में आया

§  तकनीकी उपकरण का विकास तथा दक्षता

§  उपकरण कुशलता तथा दक्षता के कारण कालांतर में मानव का विकास

§  जीव जंतु के बारे में अधिक जागरूक

§  आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए प्राकृति पर निर्भरता

§  इसे मानव प्रकृति के अंतर्संबंध के विकास में महत्वपूर्ण कदम

 

  कृषि के आगमन के पश्चात मानव प्रकृति संबंध

§  कृषि के आगमन के साथ मानव संबंधों में परिवर्तन

§  मानव जीवन केवल प्राकृतिक रूप से उपलब्ध सामग्री पर निर्भर

§  मानव का कोई नियंत्रण नहीं

§  कृषि के कारण मानव दक्षता में बढ़ोतरी

§  मानव कृषि की और झुकाव

§  अनाजों को फलों मासों के अपेक्षा अधिक समय तक सुरक्षित रखना

§  सामाजिक स्तरीकरण को बढ़ावा

§  जनसंख्या वृद्धि के कारण हस्तांतरण की प्रवृत्ति में बढ़ोतरी

§  मानव खाद्य सामग्रियों से अलग हटकर शिल्प कला एवं तकनीकी विकास के लिए पर्याप्त समय देना

§  जनसंख्या वृद्धि के कारण अत्यधिक कृषि पर जोर

§  अच्छे उपकरणों तथा सिंचाई के लिए अच्छी तकनीक की मांग

§  धातु के प्रचलन के पश्चात धातु के औजारों का उपयोग

§  आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए मानव द्वारा प्राकृतिक संसाधनों का दोहन

 

  औद्योगिक युग में प्रकृति मानव के अंतर्संबंध

§  मानव प्रकृति अंतर्संबंध में गुणात्मक तथा युग प्रवर्तक परिवर्तन औद्योगिक युग के साथ आरंभ होता है

-कृषि अधिशेष का उत्पादन

-शिल्प कला धातु कला का विकास

-विज्ञान नवीन तकनीक का विकास

§  प्राकृतिक संसाधनों के पूर्ण शोषण तथा दोहन की ओर उन्मुख

§  कारण स्वरूप - प्राकृतिक आपदाएं पर्यावरण प्रदूषण की समस्याएं में बढ़ोतरी

§  औद्योगिक युग में तकनीकी स्तर पर मानव को शारीरिक श्रम से मुक्ति

§  अजैविक स्रोतों के रूप में वैकल्पिक ऊर्जा का उपयोग

§  तापीय ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में परिवर्तन कर इसका व्यापक उपयोग

§  ऊर्जा की निरंतर बढ़ती मांग

§  कोयला पेट्रोलियम जैसे नए स्रोतों का खोज

§  प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण की नई अवधारणा का जन्म

§  प्राकृतिक ऊर्जा संसाधन हमेशा के लिए खत्म ना हो जाए इसके लिए चिंतन

§  औद्योगिकीकरण

§  उत्पादन क्षमता में वृद्धि

§  भोजन सामग्री की बहुलता

§  जनसंख्या स्तर में वृद्धि

§  जनसंख्या वृद्धि के कारण खेती पर दबाव , जंगलों तथा प्राकृतिक संसाधनों पर प्रभाव

§  बढ़ते हुए मशीनरी के कारण ऊर्जा की मांग में वृद्धि

§  ऊर्जा के जीवाश्म के रूप में लापरवाही से उपयोग

§  उद्योगों में अंधाधुन वृद्धि

§  कारण स्वरूप पर्यावरण प्रदूषण की समस्या उत्पन्न होना गंभीर पर्यावरण संकट का सामना करना

ग्रीन हाउस गैस का संकट



BY-VISHWAJEET SINGH
@THE E NUB & NUB INFO
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