MA History MHI-101, Unit-8 अफ्रीका

0

  Unit-8 अफ्रीका



नील घाटी सभ्यता

Ø  नील घाटी सभ्यता का आरंभ 3000 .पू. पहले का है।

Ø  यहाँ 332 .पू. तक 31 राजवंशों ने शासन किया।

Ø  रोमवासियों ने 30 .पू. से 345 .पू. तक शासन किया।

Ø  अरबों ने 642 से 1517 . तक मिस्र पर शासन किया।

Ø  1798 . में फ्रांसीसियों का प्रवेश हुआ एवं फिर 1882 में उस पर अंग्रेजों का कब्जा हो गया।

Ø  मिस्र का पहला पिरामिड तीसरे राजवंश के दूसरे राजा दजोसर द्वारा बनवाया गया।

Ø  उसे सक्काशेह सीढ़ीनुमा पिरामिड के रूप में जाना जाता है।

Ø  गिजा में भी कई पिरामिड बने,

Ø  जिन्हें खुकु, खाफरे और मेनकुरे नामक फैरोहों द्वारा बनवाया गया था।

Ø  पिरामिड मुख्यतः - मृत राजा के रक्षित शव को रखने के लिए बनाया जाता था।

Ø  पिरामिड में ईश्वर और मृत राजा की पूजा के लिए मंदिर भी होता था।

Ø  उसमें शासकों के सेवकों, पत्नियों एवं कभी-कभी बच्चों को भी दफनाया जाता था।

Ø  उनके भीतर राजा की जरूरत की चीजें भी रखी जाती थीं।

Ø  बाद में शासक के पिरामिड के बगल में सामंतों के पिरामिड भी बनने लगे।

Ø  मिस्रवासी मृत्यु के बाद जीवन में विश्वास रखते थे।

Ø  यही कारण था कि मृत राजा के साथ उसकी जरूरत की वस्तुएँ भी दफनायी जाती थीं।

Ø  बाद में मृत राजा की पूजा की परम्परा भी शुरू हुई।

 

Ø  सार्वभौमिक होने के कारण सूर्य देवता को सभी लोग स्वीकार करते थे।

Ø  कई बार स्थानीय मंदिर राष्ट्रीय प्रतीक की भूमिका भी अदा करते थे।

Ø  बाद में यह मंदिर आर्थिक और राजनीतिक भूमिकाएँ भी अदा करने लगे।

Ø  मंदिर का पुजारी केवल धार्मिक भूमिका ही नहीं निभाता था, बल्कि उसकी कुछ प्रशासनिक जिम्मेदारियां भी थीं,

Ø  जैसे- जमीन, पशुधन, परिवहन आदि की देखभाल तथा न्याय प्रदान करना।

Ø  फैरोह पृथ्वी पर ईश्वर के दूत के रूप में शासन करते थे।

Ø  उन्हें होरस के रूप में जाना जाता था।

Ø  सम्राट् सेमसरेट I कहता है कि ईश्वर ने मुझे पृथ्वी पर गड़रिया बनाकर भेजा है, ताकि मैं सब कुछ व्यवस्थित रख सकूं।

Ø  राजा से उम्मीद की जाती थी कि वह समाज में व्यवस्था को बनाए रखे।

Ø  मिस्रवासी राजा को दैवी पुरुष मानते थे।

Ø  राजा के उत्तराधिकार का प्रश्न निर्विवाद नहीं था। उत्तराधिकार में सबसे बड़े बेटे को गद्दी पर बिठाने के नियम  का उल्लंघन भी होता था।

Ø  सेटी-I, रामसेस-II आदि ऐसे ही राजा थे, जिनके बारे में कहा जाता था कि उन्होंने उत्तराधिकार के नियम का उल्लंघन करके गद्दी प्राप्त की थी।

Ø  महारानियों को शाही पिरामिड में स्थान मिलता था।

Ø  साम्राज्य लोगों का न्यायदाता एवं व्यवस्थापक होता था।

Ø  उत्पादन की देखभाल, कानून-व्यवस्था आदि की देखरेख राजकुमार या पुरोहित किया करते थे।

Ø  कभी-कभी राजकुमार को सेनानायक की जिम्मेदारी भी दी जाती थी।

Ø  मिस्रवासी पैपिरस जो कि एक प्रकार का पेड़ था, उसका का प्रयोग लेखन हेतु करते थे।

Ø  मिस्र की लेखन कला को पैपिरस कहा जाता है।

Ø  लिपियों को सीखने के लिए विद्यालय भी खोले गए।

Ø  उस काल में किसी पद को प्राप्त करने के लिए लेखन का ज्ञान अनिवार्य शर्त श्री।

Ø  लिपिकों द्वारा शासन के कार्यों का लेखा-जोखा रखा जाता था। 

Ø  निचले तबके के लोग मजदूरी किया करते थे।

Ø  मिस्रवासी पहियों का उपयोग नहीं करते थे।

Ø  इसी कारण इमारत बनाने के लिए भारी-भरकम सामानों को ढोने का काम मजदूर ही किया करते थे।

Ø  बाढ़ के मैदानों में उपज इतनी होती थी कि एक वर्ष की फसल से ही बड़ी-बड़ी इमारतें खड़ी की जा सकती थी।

Ø  मजदूर कृषि का कार्य भी करते थे।

Ø  पहिए के अभाव के बावजूद भी परिवहन व्यवस्था सुव्यवस्थित थी।

Ø  यहाँ के लोग परिवहन के लिए जलमार्गों का उपयोग किया करते थे।

Ø  उन्हीं के माध्यम से खेतों के अनाज को भंडारगृह तक पहुँचाया जाता था।

 पश्चिमी अफ्रीका

 

Ø  पश्चिमी अफ्रीका  में भी पाषाण युग और लौह युग सभ्यताओं की मानव बस्तियाँ प्राप्त हुई हैं।

Ø  आधुनिक मारीशेनिया की पश्चिमी सीमा से लेकर आधुनिक नाइजीरिया की पूर्वी सीमा तक के क्षेत्र  को आमतौर से पश्चिमी अफ्रीका के रूप में जाना जाता है।

Ø  अरब के प्रभाव से पूर्व यहाँ भी कुछ राजतंत्रों का विकास हुआ था।

Ø  उन राजतंत्रों में कावकाव, मालेल, घाना तथा कनेम इनमें प्रमुख थे।

Ø  नगर एवं शहर का विकास हुआ था।

Ø  बाजार केन्द्र एवं व्यापार केन्द्र एक-दूसरे से जुड़े हुए थे।

Ø  विकसित कृषि के कारण ही नगर और शहर का अस्तित्व था।

Ø  यह राजतंत्र सेनेगल तथा नाइजर नदी के मध्य तथा दक्षिणी सहारा के छोर पर विकसित हुआ।

Ø  आय का मुख्य स्रोत सहारा पार का व्यापार मार्ग था।

Ø  उनके पास सोना, हाथीदांत तथा अन्य कृषि उत्पाद भी थे।

Ø  उनके पास नमक की कमी थी।

Ø  लोहा उनके पास पर्याप्त मात्रा में था, जिनके बदले ये तांबा तथा अरवी लोहा खरीदते थे।

Ø  ये दासों को भी बेचते थे।

Ø  पाना एक शक्तिशाली राजशाही था।

Ø  उसकी राजधानी कुम्बी सालेह थी, जो कि दो भागों में विभाजित थी

Ø  उसके एक भाग में मिट्टी का बना राजा का महल था, जबकि दूसरे भाग में पत्थर के घर एवं मस्जिदें थीं।

Ø  राजा ईश्वर के प्रतिनिधि के रूप में शासन करता था।

Ø  राजा को साष्टांग दंडवत करने की परम्परा थी।

Ø  राजा के पास विशाल सेना भी थी,

Ø  जिसका प्रयोग करके वह व्यापार मार्गों पर अपना नियंत्रण रखता था।

Ø  इस समाज की समृद्धि का बहुत बड़ा कारण था व्यापार मागों पर उनका नियंत्रण

Ø  घाना राजशाही में कृषि उन्नत अवस्था में थी।

Ø  सहारा व्यापार मार्ग पर उनका नियंत्रण था,

Ø  परिणामस्वरूप यह समृद्ध राजतंत्र था।

Ø  उत्तर से दक्षिण नमक जाता था, जबकि दक्षिण से सोना एवं तांबा जाता था।

Ø  12वीं शताब्दी तक यहाँ के लोग इस्लाम ग्रहण कर चुके थे। समाज मात्र सत्तात्मक था।

Ø  ग्राम का प्रधान मुखिया होता था।

Ø  ग्राम के ऊपर गोत्र था।

Ø  ग्राम को मिलाकर प्रांत बनता था।

Ø  आम जनता साम्राज्य के लिए उत्पादन का काम करती थी।

Ø  खेती के साथ पशुओं, खनन, शिल्प आदि का काम भी होता था।

Ø  माले साम्राज्य सोने के लिए प्रसिद्ध था।

Ø  उस क्षेत्र में बाजरा, बीन्स, चावल प्रमुख फसलें थीं।

Ø  सिंचाई का कार्य वर्षा और नदियों से होता था।

Ø  ग्रामीण आबादी काफी सघन थी

Ø  शहर की आबादी भी अच्छी-खासी थी।

Ø  शहर में शिल्प के साथ-साथ विभिन्न प्रकार की धातुओं का कार्य भी होता था।

Ø  दक्षिणी अफ्रीका की अर्थव्यवस्था मिश्रित खेती अर्थव्यवस्था' थी।

Ø  मिश्रित खेती में कृषि और धातुकर्म के साथ-साथ पशुपालन तथा शिकार और संग्रह भी शामिल था।

Ø  बन्तु लोग मैगनाइट भी निकाला करते थे।

Ø  ये लोग तांबे का उपयोग करना भी जानते थे।

Ø  यहाँ के लोगों की अर्थव्यवस्था के आधार पशु थे।

Ø  यहाँ के लोगों का धन पशु था,

Ø  अकाल के समय उनके लिए काफी उपयोगी होता था।

Ø  पत्नी प्राप्त करने के लिए भी पशुधन आवश्यक था।

दुल्हन का मूल्य

Ø  दुल्हन का मूल्य केवल पशु के रूप में ही होता था।

Ø  खोईखोई' समाज यहाँ का धनी वर्ग था।

Ø  बन्तु लोग झाड़ियों को साफ कर उसे खेती योग्य बनाते थे,

Ø  पुरुष पशुधन की देखरेख करते थे।

Ø  बच्चा 10 वर्ष की उम्र से ही काम करना प्रारम्भ कर देता था।

Ø  बुजुर्ग पुरुष चिकित्सा, पुरोहित आदि काम किया करते थे।

Ø  महिलाएँ भी खेती में साथ देती थीं।

Ø  पुरुष जंगल साफ करके खेत बनाने का काम करते थे।

Ø  उसके बाद खेती का काम महिलाएँ किया करती थीं।

Ø  परंतु महिलाएँ पुरुषों के अधीन होती थीं।

Ø  दक्षिणी अफ्रीका के बन्तुभाषी समाज में दुल्हन का मूल्य एक अनूठी परंपरा थी।

Ø  शादी के बाद महिला पीहर जाकर वहाँ का काम संभाला करती थी।

Ø  परंतु महिला की शादी के लिए ससुराल वालों को दुल्हन का मूल्य देना होता था।

Ø  दुल्हन का मूल्य पशुधन होता था।

Ø  जिन पुरुषों के पास ज्यादा पशुधन होता था,

Ø  दुल्हन के माता-पिता उसी से अपनी बेटी की शादी करना चाहते थे,

Ø  ताकि दुल्हन के मूल्य के रूप में उन्हें ज्यादा पशुधन मिल सके।

Ø  अधिकांश समुदायों में राजा या सरदार होता था।

Ø  राज्य के सरदारों से यह अपेक्षा की जाती थी कि अच्छी फसल के लिए वह अच्छी वर्षा करवाएँ।

Ø  सरदारों के परिवारों में अन्तर्विवाह होने से भी राजनीतिक व्यवस्था छोटी होती थी।

सरदार बनने के लिए भी पशु संसाधन का होना आवश्यक था।

https://www.youtube.com/watch?v=yP4E1DYKZCw

the e nub 

by vishwajeet singh


Tags

एक टिप्पणी भेजें

0टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें (0)