उत्तर भारत में प्रारंभिक ऐतिहासिक नगरीय केन्द्रों का पुरातत्व : अभ्युदय और विशेषताएं
उत्तर भारत में प्रारंभिक ऐतिहासिक नगरीय केन्द्रों का पुरातत्व : अभ्युदय और विशेषताएं
(Archaeology of the Early Historic Urban Centres in
North India: Emergence and Characteristics)
प्रारंभिक ऐतिहासिक नगरीय केन्द्रों का आविर्भाव
· प्रारंभिक ऐतिहासिक नगरीय केन्द्रों के आविर्भाव (उत्पत्ति) के अनेक कारक बताए गये हैं, जो विवादग्रस्त है।
· लौह प्रौद्योगिकी, शिल्पकारों, व्यापारियों और श्रेणियों का उदय, राजनीति घटनाक्रम और बौद्ध तथा जैन धर्म का उदय शामिल है।
· इनमें सर्वाधिक विवादास्पद गंगाघाटी में लौहे के औजार और लोहे के हलों का प्रयोग है।
· रामशरण शर्मा -
यह तर्क दिया कि लौहे के औजारों से परिवहन सरल हो गया और व्यापार तथा शिल्प कला की उन्नति हुई।
· लौह प्रौद्योगिकी को लेकर विद्वानों में आम सहमति नहीं है।
· निहाररंजन रे - ने अनेक पुरातात्विक स्थलों से प्राप्त लौह के औजारों के मात्रात्मक विश्लेषण के आधार पर कहा कि - ये औजार अधिशेष उत्पादन के लिए पर्याप्त नहीं थे और कृषकों की निर्भरता लकड़ी के हल और फावड़े आदि पर थी।
· कृषिगत भूमिका के विषय में दिलीप के. चक्रवर्ती, शेरीन रत्नागर ने भी इसका विरोध किया है।
· इस प्रकार पहली सहस्राब्दि में नगरीकरण का मुद्दा गतिरोध तक पहुंच गया और अब इसके व्यवस्थित सर्वेक्षण और गंभीर अध्ययन की आवश्यकता है।
प्रारंभिक ऐतिहासिक नगरीय केन्द्रों की विशेषताएं प्रारंभिक ऐतिहासिक नगरीय केंद्रों की विभिन्न विशेषताओं; जैसे- आकार, किलेबंदी, घर, शिल्प उत्पादन आदि का अध्ययन आवश्यक है।
आकार
· नगरीय केंद्रों के आकार के संबंध में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है।
· कुछ नगरों के किलेबंद क्षेत्र होने की जानकारी है, परन्तु कुल आकार ज्ञात नहीं है।
· कौशाम्बी का किलेबंद रहित क्षेत्र 25 हेक्टेयर और भीटा का 5 हेक्टेयर है।
· स्थलों के आकार में बहुत अधिक भिन्नता है।
किलेबंदी
· अधिकांश प्रारंभिक ऐतिहासिक नगरीय केंद्र किलेबंद थे,
· बसावट दीवार के बाहर भी फैली थी।
· इन किलेबंदियों में से अनेक स्मारकीय स्वरूप में थीं;
· जैसे- कौशाम्बी, अहिच्छत्र, मथुरा आदि में 15 मीटर ऊँची दीवारें थीं।
· प्राचीरों की पुश्तबंदी कभी-कभी कच्ची ईंटों की होती थी।
· नगर की प्राचीर बाढ़, आक्रमणकारियों आदि से सुरक्षा के लिए थीं।
· प्राचीरों में द्वार - जनसंख्या के कतिपय वर्गों (Certain
class ) को बाहर रखने के लिए
प्रारंभिक ऐतिहासिक नगरीय केंद्रों के बाहरी क्षेत्र
· नगरीय केंद्रों के बाहरी क्षेत्र किलेबंदी से बाहर का परिधीय क्षेत्र था।
· अकीरा शिमादा - दक्कन में अनेक स्थलों; जैसे—अमरावती, नागार्जुनकोंडा और सन्नथि में बौद्ध मठां पर और अन्य संप्रदायों से संबंधित वस्तुओं, अस्थि कलश और महापाषाण खोजे हैं।
· शिमादा के अनुसार नगर या कस्बे के सीमान्त अवस्थित थे।
· यह परिधीय क्षेत्र एक प्रकार का वह स्थल था - जहाँ व्यापक सामाजिक समूह का वास था।
· ऊपरी गंगा के मैदानों में स्थित - इंदौर खेड़ा जहाँ मुख्य बसावट के बाहर अनेक टीलों की खुदाई की गई।
· इसके साथ गैर घरेलू स्थलों का उत्खनन किया गया है।
· मध्य गंगा के मैदान में भीतरी गाँव में एक गुप्तकालीन मंदिर तथा तामपत्र अभिलेख मिला है।
· यह मंदिर स्कन्दगुप्त के काल का है ।
· सोंख क्षेत्र में एक शिखर वाले देवालय का उत्खनन किया गया।
नगर का फैलाव
· नगर के फैलाव का साक्ष्य तक्षशिला घाटी में मिला है।
· दो नगरों - सिरकप और चारसड्डा में प्रारंभिक ऐतिहासिक नगरों की विशेषताएं मिलती हैं।
· सिरकप नगर में ग्रिड योजना रूपी बसावट मिलती है।
· इसी प्रकार चारसड्डा में प्रारंभिक नगर वाला हिसार अनियोजित (Unplanned) था
· हिसार - किले आदि की चहारदीवारी या
परकोटा
· ग्रिड योजना से पता चलता है कि - नगरों की स्थापना में राजनीतिक सत्ता मौजूद थी और तीव्र गति में निर्माण हुआ।
· नगर अनेक ब्लॉकों में विभाजित है।
· तृतीय शताब्दी ई.पू. में राजघाट और कौशाम्बी में भी आवासीय घरों में बड़े पैमाने पर पक्की ईंटों का प्रयोग
· यहाँ सार्वजनिक नालियों और पत्थर के कुओं और तालाब के भी साक्ष्य मिले हैं
· जिससे नागरिक सत्ता की जानकारी होती है।
· यही स्थिति राजघाट और श्रृंगवेरपुर में भी दिखाई देती है।
· श्रृंगवेरपुर में ईंट से निर्मित एक परिसर है, जिसमें तीन तालाब और गाद जमाव के लिए एक गड्ढा है।
· इनको जोड़ने तथा पानी के प्रवेश और निकास के लिए नालियां हैं।
· इस प्रकार यहाँ पानी की पूरी व्यवस्था थी।
सार्वजनिक और धार्मिक भवन
· कई नगरों और कस्बों में सार्वजनिक और धार्मिक भवनों के अवशेष मिले हैं।
· इनमें सर्वाधिक प्रसिद्ध कुम्रहार (पाटलीपुत्र) में एक स्तम्भयुक्त आयताकार हॉल है।
· इसकी नींव में पत्थर के 80 विशाल स्तम्भ मिले हैं।
· इसे महल या धार्मिक स्थल कहा जा सकता है।
· जी. आर. शर्मा - कौशाम्बी में उदयन के महल की पहचान की है, - जो बुद्ध का समकालीन था।
· बी.बी. लाल - ने इसका खण्डन किया है।
· सार्वजनिक भवनों या महल के रूम साक्ष्य मिले हैं,
· परंतु धार्मिक भवनों के कई साक्ष्य मिले हैं, - जैसे- कौशाम्बी में किलेबंद नगर, घोसिताराम मठ, गनवारिया में वर्गाकार चार उपासना स्थल और अनेक मठ।
घर
· प्रारंभिक ऐतिहासिक नगरीय केंद्रों से घर के प्रमाण मिले हैं; जैसे- तक्षशिला में सिरकप, सोंख, इंदौर खेड़ा और भीटा।
· सोंख में मिले घर में सात कमरे हैं और एक नियोजित पंक्ति में बने हुए हैं।
· इस घर में पहुँचने का रास्ता एक संकरी गली से होकर था, जो प्रांगण में ले जाती थी।
· इस घर में दो प्रांगण थे - एक बाहर और एक भीतर।
· बाहरी प्रांगण के दक्षिण में एक दरवाजा था, जिससे होकर अंदर के प्रांगण में पहुँचा जा सकता था।
· सभी सात कमरों के द्वार इसी प्रांगण में खुलते थे।
· दक्षिण के कोने के द्वार कतार के बीच चूल्हे का अवशेष मिला है।
· इस घर में नालियां और सोख गड्ढा स्थापित था।
· इंदौर खेड़ा के सात घरों के एक बड़े भाग का उत्खनन किया गया।
· इन घरों की दीवारें कच्ची ईंटों की बनी थीं।
· ईंटों पर मिट्टी का प्लास्टर भी लगा था।
· यहाँ भी घर के बाहर और भीतर आंगन मिला है।
· मार्शल ने भीटा के कई घरों के बारे में जानकारी प्राप्त करने का प्रयास किया है।
· सबसे प्राचीन घर को मार्शल ने 'हाउस ऑफ गोल्ड' का नाम दिया है, जो मौर्य काल का है और कच्ची ईंटों से बना है।
· इसमें भी एक खुला आयताकार प्रांगण है।
· कुछ कमरों की दीवारें मोटी हैं, जिससे पता चलता है कि इसमें दूसरी मंजिल भी रही होगी।
· हाउस ऑफ गोल्ड के ठीक पश्चिम में एक घर को 'हाऊस ऑफ नागदेव' नाम दिया गया।
शिल्प उत्पादन
· नगरीय केन्द्र की एक प्रमुख विशेषता शिल्प उत्पादन है।
· इनमें कपड़े या मिट्टी के बर्तनों पर चित्रण के लिए सांचे, मूषा
(crucible) और स्वर्णकारों की कुठाली शामिल है।
· मूषा (crucible) - पात्र जिसमें धातु को गलाते हैं;
कुठाली, कुल्हिया, घरिया
· कुछ स्थलों पर अलग प्रकार के शिल्प सूचक मिलते हैं; जैसे- सोंख में कूंची ।
· पूर्वी उत्तर प्रदेश में कोपिया में शीशे के उत्पादन का उल्लेख मिलता है।
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प्रारंभिक ऐतिहासिक नगरीय केन्द्र
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By Vishwajeet Singh