संसाधनों का उपयोग एवं मानव समाज
· नवीकृत संसाधनों की श्रेणी में वे संसाधन आते हैं, जिनमें पुर्नवीकरण का गुण होता है।
· ऐसे संसाधनों की आपूर्ति दोबारा हो जाती है।
· नवीकृत योग्य संसाधन अधिकतर जीवित संसाधन होते हैं, जैसे- पेड़-पौधे, जीव-जन्तु इत्यादि।
· इसमें कुछ ऐसे प्राकृतिक संसाधन भी आते हैं, जैसे-सूर्य की ऊर्जा, वायु तथा जल, जिनकी असीम आपूर्ति के गुणों के कारण उन्हें इस श्रेणी में रखा जाता है।
· इसके विपरीत ऐसे प्राकृतिक संसाधन जिनकी आपूर्ति हजारों वर्षों में मंद प्राकृतिक चक्र द्वारा होती है,
· इन्हें व्यावहारिक तौर पर गैर-नवीकृत संसाधनों की श्रेणी में रखते हैं।
· इनका अस्तित्व इनके प्रयोग की दर पर निर्भर करता है
· गैर-नवीकृत संसाधनों में मुख्य रूप से धातुएँ, खनिज तथा मृदा आती हैं।
· इनमें से कुछ की प्राप्ति भूमि पर एवं कुछ की खदानों द्वारा होती है।
· आदिमानवों द्वारा जिस सबसे महत्त्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन का व्यापक प्रयोग किया गया, वह पाषाण है।
· आदिमानवों द्वारा उपकरणों के निर्माण के लिए प्राकृतिक रूप से उपलब्ध पाषाण का प्रयोग किया जाता था,
· जैसे-कुल्हाड़ी तथा विदारणी एवं काटने के लिए विभिन्न प्रकार के अन्य उपकरण इत्यादि ।
· कृषि का आरम्भ व्यवस्थित रूप से संसाधन उपयोग की प्रक्रिया में एक महत्त्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन समझा जाने लगा।
· साथ ही, पाषाण के उपकरणों में भी परिवर्तन देखने को मिलते हैं।
· कृषि कार्य आरम्भ होने से मानव समाज में स्थायी आवासीय समुदायों का उदय आरम्भ हो जाता है
· जब समय-समय पर बाढ़ द्वारा लायी गई गाद पर कृषि कार्यों को वरीयता दी जाने लगी।
· इस प्रकार एक नई संसाधन उपयोग प्रक्रिया का ज्ञान मानव समाज को हुआ।
· मानव समाज अपने पूर्ववर्ती खानाबदोशी जीवन से धीरे-धीरे एक स्थिर आवासीय समाज की ओर आ रहा था।
· प्राचीन पाषाण उपकरणों पर मानव की निर्भरता में परिवर्तन हुआ।
· नयी आवश्यकताओं ने छोटे उपकरणों के विकास को जन्म दिया।
· कृषि स्थलों से कुछ महत्त्वपूर्ण सूक्ष्म पाषाण उपकरण प्राप्त हुए हैं।
· अब इस काल में चाक से तथा हाथ से निर्मित मिट्टी के बर्तन भी मिलने लगते हैं।
· इस प्रकार पत्थर के अलावा अन्य पदार्थों, जैसे-हड्डी, मिट्टी तथा रेत का प्रयोग भी मानव समाजों द्वारा किया जाने लगा था।
· संसाधन उपयोग प्रक्रिया के क्षेत्र का विस्तार हुआ
· मानव समाज की जटिल संरचना का विकास एवं विविध प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग आरम्भ हो गए।
· जब से मानव समाज को लौह तकनीक का ज्ञात प्राप्त हुआ, तब से मानव समाज के विकास में क्रान्तिकारी परिवर्तन आया।
· लोहे के प्रयोग से कृषि सम्बन्धी तकनीकियों में व्यापक उन्नति हुई।
· पूर्व काल में व्याप्त निर्वाह अर्थव्यवस्था का स्वरूप धीरे-धीरे बदलकर कृषिप्रधान हो गया।
· कृषि अधिशेष के कारण राजनीतिक सत्ता पर अनुत्पादक वर्गों का अधिकार हो गया।
· आरम्भिक राजनीतिक गतिविधियों की प्रक्रिया में लौह तकनीक के योगदान के कारण क्षेत्रीय राज्यों का उदय होने लगा।
· हालाँकि लोहे का प्रयोग एवं इसके मानव समाज पर प्रभाव को लेकर इतिहासकारों के बीच मतभेद है।
· जहाँ कुछ विद्वान कृषि अधिशेष उत्पादन का मुख्य कारण और लौह तकनीक को मानते हैं,
· वहीं कुछ इतिहासकारों का मानना है कि आरम्भ में लोहे का व्यापक प्रयोग शुरू नहीं हुआ था।
· कृषि कार्यों के लिए लोहे का उपयोग सीमित अर्थों में ही होता था।
· लोहे ने तत्काल ही प्रारम्भिक कालों में महत्त्वपूर्ण स्थान नहीं लिया होगा फिर भी यह विकास का एक ऐसा कदम था, जिसमें मानव समाज के विभिन्न पहलुओं को प्रभावित करने की अपार क्षमता थी।
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संसाधनों का उपयोग एवं मानव समाज
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By Vishwajeet Singh