MHI-08, Lesson-7, || कृषि के उद्गम (Part-1) || The E Nub ||

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कृषि के उद्गम (Part-1)


 

नवपाषाण कालीन क्रान्ति की महत्ता

  • कृषि का आगमन मानव प्रकृति सम्बन्धों में एक महत्त्वपूर्ण घटना माना जाता है। 
  • इस काल में जीवन इतना अधिक बदल गया कि इस काल को नवपाषाण कालीन क्रान्ति कहा जाता है।
  • मानव ने कृषि के आविष्कार को पूरी तरह अपना लिय तभी से नवपाषाण युग का आरम्भ हुआ।
  • इस क्रान्ति को लाने में नवपाषाण कालीन उपकरण तकनीकी में हुए परिवर्तनों का महत्त्वपूर्ण योगदान था।
  • इस काल में मानव जौ, चावल, गेहूँ जैसी फसलों के उत्पादन से अपना भोजन स्वयं प्राप्त करने लगा था।
  • यह मानव तथा पर्यावरण के बीच के सम्बन्धों में एक नये युग का आगाज था।

 

  • नवपाषाण काल में पाषाण शिल्प उपकरणों में आये परिवर्तनों के दूरगामी परिणाम हुए
  • इतिहासकार गोल्डन चाइल्ड ने इस अवस्था को 'नवपाषाण क्रान्ति की संज्ञा दी है।
  • मानव जीवन पर इन नये पाषाण उपकरणों तथा शिल्पों का प्रभाव अत्यन्त महत्त्वपूर्ण था।
  • इस काल में पत्थर से बने उपकरण गोलाईदार चिकनी लम्बी धार वाले थे।
  • इसके कारण भूमि की जुताई एक आसान प्रक्रिया हो गई थी।
  • अतः नवपाषाण कालीन मानव - भोजन की आपूर्ति को बढ़ाने के लिए भूमि में बीजों को बोना भी आवश्यक था।
  • नये शिल्प उपकरणों के कारण खेती करना आसान और लाभदायक हो गया।
  • अब पूर्व काल में प्रयोग किये जाने वाले अनगढ़ उपकरणों के स्थान पर पत्थरों की बनी कुल्हाड़ी से पेड़ों को काटकर भूमि को साफ करना आसान हो गया था।
  • एक तरह का प्राचीन फावड़ा जो लकड़ी से जुड़े नुकीले पत्थर की नोक वाला होता था, इससे भूमि को खोदकर मुलायम बनाया जाता था।
  • साथ ही नये उपकरणों, जैसे- चिकने तथा नुकीले भाले तथा बाणों से आखेट करना एक सरल कार्य हो गया।
  • इन शिल्प उपकरणों के कारण शिकार के लिए ज्यादा लम्बी दूरियाँ तय करने की जरूरत नहीं रह गई थी।

 

  • कुछ विद्वानों का मानना है कि - नवपाषाण काल में कृषि को छोड़कर अन्य जो भी परिवर्तन हुए उसका सारा श्रेय नवपाषाण तकनीकी को नहीं दे सकते हैं।
  • इस काल में कृषि के विकास के कारण विविध परिवर्तन हुए।
  • जो भोजन तुरन्त इस्तेमाल में नहीं आता था उसको सुरक्षित रखना आवश्यक हो गया।
  • फसल काटने के पश्चात तुरन्त सारा अनाज खर्च नहीं हो सकता था।
  • उसे अगली फसल तक चलाना था और उसमें से बोने के लिए कुछ बीज बचाकर रखने की आवश्यकता थी।
  • इसलिए सबसे प्राचीन नवपाषाण कालीन बस्तियों में भी धान्य कोठार पाए गए हैं।
  • धान्य कोठार - अधिशेष अनाज खराब मौसम के समय और फसल खराब होने पर काम आता था
  • इससे बढ़ती हुई जनसंख्या का जीवन निर्वाह भी होता था।

 


  • इसके अलावा कृषि विस्तार ने पशुपालन को एक सुदृढ़ आधार प्रदान किया।
  • फसल कटने के बाद खाली भूमि पर उगे ठूंठ पशुओं के चारे के प्रयोग में लाये जाते थे।
  • इसके बदले में किसानों को पशुओं से दूध, मांस कन प्राप्त होता था।
  • इन गतिविधियों के परिणामस्वरूप मानव की आखेट पर निर्भरता कम हो गई।
  • इसके कारण एक स्थायी कृषि समुदाय तथा आवासीय गाँवों की स्थापना हो गई।
  • धीरे-धीरे कृषक समुदाय अपनी आपूर्ति से अधिक अनाज का उत्पाद करने लगा।
  • इस काल में मिट्टी तथा उससे बनी इंटों से निर्मित स्थान में अधिक उत्पादन को एकत्रित करना सम्भव हो गया था।
  • इन अधिशेष उत्पादनों का विनियोजन गैर कृषि उत्पादक कार्यों में संलग्न लोगों में किया जाने लगा।

 

  • नवपाषाण कालीन संस्कृति के आगमन निरन्तरता के लिए क्रान्तिकारी परिवर्तन - जैसे शब्दों को लेकर विद्वानों में काफी मतभेद है।
  • इस सभ्यता की कालावधि 7000 .पू. से 3800 .पू. निर्धारित की गई है।
  • इरफान हबीब - नवपाषाण काल की गति को उससे पूर्व की सभ्यता की गति से तुलनात्मक रूप में देखना होगा।
  • उदाहरण के लिए - पहले का मध्यपाषाण काल, जो लघुपाषाणिक विशेषता लिए हुए था, इसकी कालावधि भारत में लगभग 25000 वर्ष की थी।
  • इसमें मानव एक आखेटक तथा भोजन की खोज करने वाले के रूप में दिखाई पड़ता था।
  • अतः इरफान हबीब का कहना है कि सापेक्षिक रूप से इस काल में कम समय में ही मानव जीवन में व्यापक परिवर्तन हुआ। इन सबके कारण नवपाषाण काल के लिए क्रान्ति शब्द का प्रयोग सर्वथा उचित है।

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By Vishwajeet Singh

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