संवैधानिक विकास (Constitutional Developments)
साइमन कमीशन के गठन
ü ब्रिटिश सरकार - नवम्बर 1927 में सर जान साइमन की अध्यक्षता एक में सात
सदस्यों के एक कमीशन की नियुक्ति की।
ü यह संवैधानिक आयोग था ।
ü यह आयोग अपने अध्यक्ष के नाम पर साइमन कमीशन के नाम
से लोकप्रिय हुआ।
ü उद्देश्य - भारतीय संवैधानिक
सुधारों के बारे में विचार करना था।
ü इस कमीशन में कोई भारतीय सदस्य नहीं था,
ü इसकी नियुक्ति भारतीयों के कल्याण के लिए की गई थी।
ü भारतीयों ने इसका एक स्वर से विरोध किया।
ü 1927 ई. में डॉ.
अंसारी की अध्यक्षता में कांग्रेस का अधिवेशन मद्रास में हुआ।
ü अधिवेशन में कमीशन के प्रत्येक कदम तथा प्रत्येक रूप
में बहिष्कार करने का निर्णय किया गया।
ü मुस्लिम लीग तथा अन्य राष्ट्रीय दलों ने भी इस कमीशन की नियुक्ति की कटु आलोचना
की
ü भारतीय राष्ट्रवादियों के प्रबल विरोध की ब्रिटिश
सरकार ने कोई परवाह न की।
ü यह कमीशन 3 फरवरी 1928 ई. को बम्बई
पहुँचा।
ü उस दिन सम्पूर्ण देश में हड़तालें की गईं तथा कमीशन
के विरोध में सभाएं की गईं।
ü भारत में जहाँ भी यह कमीशन गया, इसके विरुद्ध काले झंडों के साथ प्रदर्शन किए गए
ü 'साइमन कमीशन वापस जाओ' का नारा लगाया गया
ü सेंट्रल असेम्बली के साथ संयुक्त कमेटी बनाने का इसका प्रस्ताव भी खारिज कर दिया गया।
ü साइमन कमीशन
- देश की विविधता से निपटने के लिए
भारतीय सरकार के स्वरूप अंततः संघीय होगा।
ü डोमिनियल स्टेट के विषय में इसके निरीक्षण बहुत स्पष्ट नहीं थे।
ü डोमिनियन स्टेट - किसी राज्य के आंतरिक मामले जैसे विधायी शक्तियां, कार्यपालिका, न्यायपालिका, सैन्य और विदेश नीति पूर्णतः स्वतंत्र होती हैं
ü डोमिनियन स्टेट को हिंदी में "औपनिवेशकि
स्वराज्य" कहा जाता है.
ü कांग्रेस के नेतृत्व में अनेक पार्टियों ने इसका
विरोध किया।
ü साइमन कमीशन ने भारतीय राजनीति को बहुत अधिक प्रभावित
किया।
ü इस कमीशन का विरोध देश के विभिन्न समूहों तथा दलों ने
एकजुट होकर किया ।
ü इस रिपोर्ट के कारण भारत में स्वतंत्रता प्राप्ति के
लिए एक राजनीतिक क्रांति प्रारम्भ हुई।
ü इसका विरोध करते हुए इसमें लाला लाजपत राय की
कुर्बानी हुई, उससे इसका महत्त्व और बढ़ गया।
ü 1929 में पूर्ण स्वतंत्रता की मांग भी इन उत्तेजित
परिस्थितियों का परिणाम था,
ü साइमन कमीशन की सिफारिशें उतनी महत्त्वपूर्ण नहीं थीं, जितनी कमीशन
द्वारा पैदा की गई राजनीतिक उत्तेजना थी।
नेहरू रिपोर्ट की
विशेषताएं
ü सभी महत्त्वपूर्ण भारतीय नेताओं तथा राजनीति दलों ने
भारत में एक सर्वसम्मत संविधान बनाकर ब्रिटिश सरकार के भारत सचिव लार्ड
वर्कनहेड को उस चुनौती को स्वीकार किया,
ü जो उसने ब्रिटिश संसद में देशवासियों को दी
थी।
ü उसने भारतीय को चुनौती देते हुए कहा था, - "आयोग का बहिष्कार करना उस समय तक व्यर्थ है, जब तक कि वे (भारतीय) एक सर्वमान्य संविधान का निर्माण नहीं कर
लेते हैं।
ü इस उद्देश्य से एक सर्वदलीय सम्मेलन पहले
दिल्ली तथा बाद में पूना में हुआ।
ü सम्मेलन ने मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में एक
उपसमिति गठित की,
ü जिसके सदस्यों में अली इमाम, तेज बहादुर सप्रु तथा सुभाषचंद्र बोस
थे।
ü उपसमिति ने अगस्त 1928 में अपनी रिपोर्ट दी, जिसे इतिहास में नेहरू रिपोर्ट कहा जाता है।
रिपोर्ट में
निम्नलिखित बातें सुझाई गई-
ü
प्रांतीय परिषद् से
निर्वाचित 200 सदस्यों वाली सात वर्षीय सीनेट होगी।
ü
भारत को पूर्ण
औपनिवेशिक स्वराज मिले
ü
उसका स्थान
ब्रिटिश शासन के अंतर्गत अन्य उपनिवेशों के समान हो।
ü
केन्द्र और
प्रांतों में पूर्ण उत्तरदायी शासन की स्थापना की जाए
ü
कार्यपालिका को विधान मण्डलों के प्रति उत्तरदायी बनाया
जाए।
ü
केन्द्रीय
व्यवस्थापिका में दो सदन हो।
ü
निम्न सदन का निर्वाचन वयस्क मताधिकार के आधार पर
प्रत्यक्ष पद्धति से
ü
तथा उच्च सदन
का निर्वाचन परोक्ष पद्धति से हो।
ü
प्रांतों और केंद्र
की शक्तियों का संघीय आधार पर विभाजन किया जाए, परंतु अवशिष्ट शक्तियाँ केंद्र को दी जाए।
ü
सांप्रदायिक निर्वाचन
प्रणाली को समाप्त करके उसके स्थान पर संयुक्त निर्वाचन
प्रणाली की स्थापना हो ।
ü
विधानमंडलों में
10 वर्षों के लिए धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए स्थानों का आरक्षण हो।
ü
नेहरू रिपोर्ट में
कोई संघीय पहलू नहीं था।
ü
सीनेट के गठन में
संघीयता के सिद्धांतों को अपनाए जाने के बावजूद प्रांतों का इसमें समान
प्रतिनिधित्व नहीं था
ü
इस प्रकार संघीय
सिद्धांत को वास्तव में इसमें लागू नहीं किया गया था।
ü 1919 के भारत सरकार अधिनियम के समान उसी सीमा तक
विकेन्द्रीकरण की बात रखी गई थी।
ü
केंद्र से रियासतों
के संबंध स्पष्ट नहीं थे।
ü
समिति ने संघीय
संविधान की स्थापना पर विचार तो किया,
परंतु इसे व्यावहारिक रूप नहीं दिया गया।
ü
इस रिपोर्ट की
सांप्रदायिकता की परेशानी का स्पष्ट रूप से सामना करने की भारतीयों की लगातार
कोशिश इसमें साकार हुई थी।
ü
रिपोर्ट में स्पष्ट
रूप से कहा गया था कि सुरक्षा के उपायों की गारंटी देकर ही अल्पसंख्यक समुदाय में
विश्वास उत्पन्न किया जा सकता है।
समिति द्वारा
प्रस्ताव -
ü प्रस्तावित संविधान में धर्म और ईमानदारी की
स्वतंत्रता देनी होगी।
ü आत्मनिर्णय के सिद्धांत के आधार पर मुस्लिम बहुसंख्यक
प्रांतों को पृथक राजनीतिक-सांस्कृतिक पहचान देनी होगी
ü सिंध को बांबे
प्रेसिडेन्सी से अलग करना होगा
ü उत्तरी-पश्चिमी सीमा प्रांत को पूर्ण राज्य का दर्जा देना होगा।
ü पृथक चुनाव प्रणाली को समाप्त करना होगा
ü मुस्लिमों के लिए केंद्र और अल्पसंख्यक प्रांतों में
ü उत्तर पश्चिमी सीमा प्रांत में गैर मुस्लिमों के लिए
सीटों के आरक्षण के साथ सभी चुनाव संयुक्त निर्वाचक मंडल के आधार पर होंगे।
भारत सरकार अधिनियम
1935
ü 1935 का सरकारी अधिनियम असंतोषजनक था
ü देश के लिए स्व-शासन मॉडल को अपनाने के लिए अपर्याप्त प्रावधान थे।
ü भारत में राजनेता उस समय परेशान थे
ü उनका मानना था कि - जिस क्षेत्र पर उन्हें आधिकारिक
जिम्मेदारी दी गई थी वह अभी भी पूरी तरह से ब्रिटिश अधिकारियों के अधिकार क्षेत्र
में था।
ü साइमन कमीशन को स्थिति की समीक्षा करने और समायोजन करने का काम
सौंपा गया,
ü साइमन कमीशन की रिपोर्ट - यह स्पष्ट हो गया कि
रिपोर्ट असंतोषजनक थी,
ü जिसके कारण लंदन में गोलमेज सम्मेलन में भारतीय समुदाय के प्रतिनिधियों के साथ चर्चा हुई।
ü असमर्थता के कारण, गोलमेज़
सम्मेलन विफल रहे।
ü भारत के संविधान - 1933 में गोलमेज सम्मेलन के सुझावों पर आधारित एक श्वेत पत्र प्रकाशित होने के बाद शुरू हुआ।
ü वायसराय लॉर्ड लिनलिथगो - श्वेत पत्र के प्रस्तावों (white paper’s proposals) की समीक्षा के लिए अध्यक्ष नियुक्त किया गया।
ü ब्रिटिश संसद द्वारा रिपोर्ट और बिल को मंजूरी,
ü शाही सहमति - भारत सरकार अधिनियम 1935 को देश में लागू कर दिया गया।
ü भारत के लिए सरकार का एक संघीय स्वरूप स्थापित किया गया था।
ü प्राथमिक स्रोत - तीसरा गोलमेज सम्मेलन, 1933 का श्वेत पत्र, संयुक्त चयन समितियों की रिपोर्ट और साइमन कमीशन रिपोर्ट
ü जिनका उपयोग 1935 के भारत सरकार अधिनियम को बनाने के लिए
किया गया था।
मुख्य विशेषताएं -
ü एक अखिल भारतीय संघ और प्रांतीय स्वायत्तता की स्थापना
ü विभिन्न प्रांतों और राजाओं-महाराजाओं की रियासतों को मिला कर भारत को
एक गणतंत्र का दर्ज़ा
ü देशवासियों को प्रांतीय सरकार बनाने का अधिकार
ü सभी भारतीय राज्यों से बने एक भारतीय संघ का निर्माण
ü ब्रिटिश भारत में गवर्नर के प्रांत और मुख्य आयुक्त
के प्रांत भी शामिल
ü भारत की सरकार ब्रिटिश ताज के अधीन
ü प्रांतों को उनके परिभाषित क्षेत्रों में - प्रशासन
की स्वायत्त इकाइयों के रूप में कार्य करने की अनुमति
ü केंद्र और इकाइयों के बीच तीन सूचियों के आधार पर शक्तियों का बँटवारा
ü दलित जातियों, महिलाओं और मजदूर वर्ग के लिये अलग से निर्वाचन की व्यवस्था
ü भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना
ü एक संघीय लोक सेवा आयोग की स्थापना
ü दो या दो अन्य प्रांतों के लिए एक प्रांतीय लोक
सेवा आयोग और संयुक्त लोक सेवा आयोग की स्थापना
ü एक संघीय न्यायालय की स्थापना
ü पहली बार भारत के लिए संविधान की रूपरेखा तैयार करने
के लिए एक संविधान सभा के गठन का प्रस्ताव
उद्देश्य
ü भारत सरकार अधिनियम 1919 द्वारा स्थापित द्वैध
शासन को समाप्त किया,
ü केंद्र में द्वैध शासन की स्थापना की,
ü द्वैध शासन (Diarchy) - एक ऐसी सरकार होती है जिसमें दो शासक मिलकर सत्ता का
संचालन करते हैं
ü ब्रिटिश भारत के प्रांतों और आंशिक या सभी रियासतों
को मिलाकर एक भारतीय संघ की स्थापना की.
ü भारत में ब्रिटिश शासन को सुरक्षित रखने और बनाए रखने की मांग की.
ü भारत सरकार के लिए और प्रावधान किए.
ü भारत की सरकार को ब्रिटिश ताज के अधीन रखा.
1935 अधिनियम में अनुसूचियाँ
अनुसूची I - संघीय विधायिका की संरचना।
अनुसूची II - ऐसे प्रावधान जिन्हें परिग्रहण को प्रभावित किए बिना
संशोधित किया जा सकता है।
अनुसूची III - गवर्नर-जनरल और गवर्नरों के बारे में बात करती है।
अनुसूची IV - शपथ और प्रतिज्ञान।
अनुसूची V - प्रांतीय विधानमंडलों की संरचना।
अनुसूची VI - मताधिकार।
अनुसूची VII - विधायी सूचियाँ।
अनुसूची VIII - संघीय रेलवे प्राधिकरण।
अनुसूची IX - एक महासंघ की स्थापना।
अगली शेष 6 अनुसूचियाँ बर्मा से संबंधित हैं।
1935 अधिनियम की कमियाँ
ü महासंघ की योजना असंतोषजनक थी।
ü इस अधिनियम ने सरकार की एक संघीय प्रणाली स्थापित करने का प्रयास किया
ü संघीय प्रणाली स्थापित करने में असफल रहा
ü ब्रिटिश प्रांतों और भारतीय प्रांतों को एक साथ लाने
का प्रयास किया,
ü लेकिन वे ऐसा करने के लिए बाध्य नहीं थे।
ü कई प्रांतों ने इसमें शामिल होने से इनकार कर दिया और
स्वतंत्रता की मांग की।
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By Vishwajeet singh