MHI-09, Lesson-16, संवैधानिक विकास (Constitutional Developments) The E Nub ||

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संवैधानिक विकास (Constitutional Developments)

 


साइमन कमीशन के गठन

ü  ब्रिटिश सरकार - नवम्बर 1927 में सर जान साइमन की अध्यक्षता एक में सात सदस्यों के एक कमीशन की नियुक्ति की।

ü  यह संवैधानिक आयोग था ।

ü  यह आयोग अपने अध्यक्ष के नाम पर साइमन कमीशन के नाम से लोकप्रिय हुआ।

ü  उद्देश्य - भारतीय संवैधानिक सुधारों के बारे में विचार करना था।

ü  इस कमीशन में कोई भारतीय सदस्य नहीं था,

ü  इसकी नियुक्ति भारतीयों के कल्याण के लिए की गई थी।

ü  भारतीयों ने इसका एक स्वर से विरोध किया।

ü  1927 . में डॉ. अंसारी की अध्यक्षता में कांग्रेस का अधिवेशन मद्रास में हुआ।

ü  अधिवेशन में कमीशन के प्रत्येक कदम तथा प्रत्येक रूप में बहिष्कार करने का निर्णय किया गया।

ü  मुस्लिम लीग तथा अन्य राष्ट्रीय दलों ने भी इस कमीशन की नियुक्ति की कटु आलोचना की

ü  भारतीय राष्ट्रवादियों के प्रबल विरोध की ब्रिटिश सरकार ने कोई परवाह न की।

ü  यह कमीशन 3 फरवरी 1928 ई. को बम्बई पहुँचा।

ü  उस दिन सम्पूर्ण देश में हड़तालें की गईं तथा कमीशन के विरोध में सभाएं की गईं।

ü  भारत में जहाँ भी यह कमीशन गया, इसके विरुद्ध काले झंडों के साथ प्रदर्शन किए गए

ü  'साइमन कमीशन वापस जाओ' का नारा लगाया गया

ü  सेंट्रल असेम्बली के साथ संयुक्त कमेटी बनाने का इसका प्रस्ताव भी खारिज कर दिया गया।

ü  साइमन कमीशन  -  देश की विविधता से निपटने के लिए भारतीय सरकार के स्वरूप अंततः संघीय होगा।

ü  डोमिनियल स्टेट के विषय में इसके निरीक्षण बहुत स्पष्ट नहीं थे।

ü  डोमिनियन स्टेट - किसी राज्य के आंतरिक मामले जैसे विधायी शक्तियां, कार्यपालिका, न्यायपालिका, सैन्य और विदेश नीति पूर्णतः स्वतंत्र होती हैं

ü  डोमिनियन स्टेट को हिंदी में "औपनिवेशकि स्वराज्य" कहा जाता है.

ü  कांग्रेस के नेतृत्व में अनेक पार्टियों ने इसका विरोध किया।

ü  साइमन कमीशन ने भारतीय राजनीति को बहुत अधिक प्रभावित किया।

ü  इस कमीशन का विरोध देश के विभिन्न समूहों तथा दलों ने एकजुट होकर किया ।

ü  इस रिपोर्ट के कारण भारत में स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए एक राजनीतिक क्रांति प्रारम्भ हुई।

ü  इसका विरोध करते हुए इसमें लाला लाजपत राय की कुर्बानी हुई, उससे इसका महत्त्व और बढ़ गया।

ü  1929 में पूर्ण स्वतंत्रता की मांग भी इन उत्तेजित परिस्थितियों का परिणाम था,

ü  साइमन कमीशन की सिफारिशें उतनी महत्त्वपूर्ण नहीं थीं, जितनी कमीशन द्वारा पैदा की गई राजनीतिक उत्तेजना थी।

 


नेहरू रिपोर्ट की विशेषताएं

ü  सभी महत्त्वपूर्ण भारतीय नेताओं तथा राजनीति दलों ने भारत में एक सर्वसम्मत संविधान बनाकर ब्रिटिश सरकार के भारत सचिव लार्ड वर्कनहेड को उस चुनौती को स्वीकार किया,

ü  जो उसने ब्रिटिश संसद में देशवासियों को दी थी।

ü  उसने भारतीय को चुनौती देते हुए कहा था, - "आयोग का बहिष्कार करना उस समय तक व्यर्थ है, जब तक कि वे (भारतीय) एक सर्वमान्य संविधान का निर्माण नहीं कर लेते हैं।

ü  इस उद्देश्य से एक सर्वदलीय सम्मेलन पहले दिल्ली तथा बाद में पूना में हुआ।

ü  सम्मेलन ने मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में एक उपसमिति गठित की,

ü  जिसके सदस्यों में अली इमाम, तेज बहादुर सप्रु तथा सुभाषचंद्र बोस थे।

ü  उपसमिति ने अगस्त 1928 में अपनी रिपोर्ट दी, जिसे इतिहास में नेहरू रिपोर्ट कहा जाता है।

 

रिपोर्ट में निम्नलिखित बातें सुझाई गई-

ü प्रांतीय परिषद् से निर्वाचित 200 सदस्यों वाली सात वर्षीय सीनेट होगी।

ü भारत को पूर्ण औपनिवेशिक स्वराज मिले

ü उसका स्थान ब्रिटिश शासन के अंतर्गत अन्य उपनिवेशों के समान हो।

ü केन्द्र और प्रांतों में पूर्ण उत्तरदायी शासन की स्थापना की जाए

ü कार्यपालिका को विधान मण्डलों के प्रति उत्तरदायी बनाया जाए।

ü केन्द्रीय व्यवस्थापिका में दो सदन हो।

ü निम्न सदन का निर्वाचन वयस्क मताधिकार के आधार पर प्रत्यक्ष पद्धति से

ü तथा उच्च सदन का निर्वाचन परोक्ष पद्धति से हो।

ü प्रांतों और केंद्र की शक्तियों का संघीय आधार पर विभाजन किया जाए, परंतु अवशिष्ट शक्तियाँ केंद्र को दी जाए।

ü सांप्रदायिक निर्वाचन प्रणाली को समाप्त करके उसके स्थान पर संयुक्त निर्वाचन प्रणाली की स्थापना हो ।

ü विधानमंडलों में 10 वर्षों के लिए धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए स्थानों का आरक्षण हो।

 

ü नेहरू रिपोर्ट में कोई संघीय पहलू नहीं था।

ü सीनेट के गठन में संघीयता के सिद्धांतों को अपनाए जाने के बावजूद प्रांतों का इसमें समान प्रतिनिधित्व नहीं था

ü इस प्रकार संघीय सिद्धांत को वास्तव में इसमें लागू नहीं किया गया था।

ü 1919 के भारत सरकार अधिनियम के समान उसी सीमा तक विकेन्द्रीकरण की बात रखी गई थी।

ü केंद्र से रियासतों के संबंध स्पष्ट नहीं थे।

ü समिति ने संघीय संविधान की स्थापना पर विचार तो किया, परंतु इसे व्यावहारिक रूप नहीं दिया गया।

ü इस रिपोर्ट की सांप्रदायिकता की परेशानी का स्पष्ट रूप से सामना करने की भारतीयों की लगातार कोशिश इसमें साकार हुई थी।

ü रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से कहा गया था कि सुरक्षा के उपायों की गारंटी देकर ही अल्पसंख्यक समुदाय में विश्वास उत्पन्न किया जा सकता है।

 

समिति द्वारा प्रस्ताव -

ü  प्रस्तावित संविधान में धर्म और ईमानदारी की स्वतंत्रता देनी होगी।

ü  आत्मनिर्णय के सिद्धांत के आधार पर मुस्लिम बहुसंख्यक प्रांतों को पृथक राजनीतिक-सांस्कृतिक पहचान देनी होगी

ü  सिंध को बांबे प्रेसिडेन्सी से अलग करना होगा

ü  उत्तरी-पश्चिमी सीमा प्रांत को पूर्ण राज्य का दर्जा देना होगा।

ü  पृथक चुनाव प्रणाली को समाप्त करना होगा

ü  मुस्लिमों के लिए केंद्र और अल्पसंख्यक प्रांतों में

ü  उत्तर पश्चिमी सीमा प्रांत में गैर मुस्लिमों के लिए सीटों के आरक्षण के साथ सभी चुनाव संयुक्त निर्वाचक मंडल के आधार पर होंगे।

 

 

भारत सरकार अधिनियम 1935

ü  1935 का सरकारी अधिनियम असंतोषजनक था

ü  देश के लिए स्व-शासन मॉडल को अपनाने के लिए अपर्याप्त प्रावधान थे।

ü  भारत में राजनेता उस समय परेशान थे

ü  उनका मानना ​​था कि - जिस क्षेत्र पर उन्हें आधिकारिक जिम्मेदारी दी गई थी वह अभी भी पूरी तरह से ब्रिटिश अधिकारियों के अधिकार क्षेत्र में था।

ü  साइमन कमीशन को स्थिति की समीक्षा करने और समायोजन करने का काम सौंपा गया,

ü  साइमन कमीशन की रिपोर्ट - यह स्पष्ट हो गया कि रिपोर्ट असंतोषजनक थी,

ü  जिसके कारण लंदन में गोलमेज सम्मेलन में भारतीय समुदाय के प्रतिनिधियों के साथ चर्चा हुई।

ü  असमर्थता के कारण, गोलमेज़ सम्मेलन विफल रहे।

ü  भारत के संविधान - 1933 में गोलमेज सम्मेलन के सुझावों पर आधारित एक श्वेत पत्र प्रकाशित होने के बाद शुरू हुआ।

ü  वायसराय लॉर्ड लिनलिथगो - श्वेत पत्र के प्रस्तावों (white paper’s proposals) की समीक्षा के लिए अध्यक्ष नियुक्त किया गया।

ü  ब्रिटिश संसद द्वारा रिपोर्ट और बिल को मंजूरी,

ü  शाही सहमति - भारत सरकार अधिनियम 1935 को देश में लागू कर दिया गया।

ü  भारत के लिए सरकार का एक संघीय स्वरूप स्थापित किया गया था।

ü  प्राथमिक स्रोत - तीसरा गोलमेज सम्मेलन, 1933 का श्वेत पत्र, संयुक्त चयन समितियों की रिपोर्ट और साइमन कमीशन रिपोर्ट

ü  जिनका उपयोग 1935 के भारत सरकार अधिनियम को बनाने के लिए किया गया था।

 

मुख्य विशेषताएं -

ü  एक अखिल भारतीय संघ और प्रांतीय स्वायत्तता की स्थापना

ü  विभिन्न प्रांतों और राजाओं-महाराजाओं की रियासतों को मिला कर भारत को एक गणतंत्र का दर्ज़ा

ü  देशवासियों को प्रांतीय सरकार बनाने का अधिकार

ü  सभी भारतीय राज्यों से बने एक भारतीय संघ का निर्माण

ü  ब्रिटिश भारत में गवर्नर के प्रांत और मुख्य आयुक्त के प्रांत भी शामिल

ü  भारत की सरकार ब्रिटिश ताज के अधीन

ü  प्रांतों को उनके परिभाषित क्षेत्रों में - प्रशासन की स्वायत्त इकाइयों के रूप में कार्य करने की अनुमति

ü  केंद्र और इकाइयों के बीच तीन सूचियों के आधार पर शक्तियों का बँटवारा

ü  दलित जातियों, महिलाओं और मजदूर वर्ग के लिये अलग से निर्वाचन की व्यवस्था

ü  भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना

ü  एक संघीय लोक सेवा आयोग की स्थापना

ü  दो या दो अन्य प्रांतों के लिए एक प्रांतीय लोक सेवा आयोग और संयुक्त लोक सेवा आयोग की स्थापना

ü  एक संघीय न्यायालय की स्थापना

ü  पहली बार भारत के लिए संविधान की रूपरेखा तैयार करने के लिए एक संविधान सभा के गठन का प्रस्ताव

 

उद्देश्य

ü  भारत सरकार अधिनियम 1919 द्वारा स्थापित द्वैध शासन को समाप्त किया,

ü  केंद्र में द्वैध शासन की स्थापना की,

ü  द्वैध शासन (Diarchy) - एक ऐसी सरकार होती है जिसमें दो शासक मिलकर सत्ता का संचालन करते हैं

ü  ब्रिटिश भारत के प्रांतों और आंशिक या सभी रियासतों को मिलाकर एक भारतीय संघ की स्थापना की.

ü  भारत में ब्रिटिश शासन को सुरक्षित रखने और बनाए रखने की मांग की.

ü  भारत सरकार के लिए और प्रावधान किए.

ü  भारत की सरकार को ब्रिटिश ताज के अधीन रखा.

 

1935 अधिनियम में अनुसूचियाँ

अनुसूची I - संघीय विधायिका की संरचना।

अनुसूची II - ऐसे प्रावधान जिन्हें परिग्रहण को प्रभावित किए बिना संशोधित किया जा सकता है।

अनुसूची III - गवर्नर-जनरल और गवर्नरों के बारे में बात करती है।

अनुसूची IV - शपथ और प्रतिज्ञान।

अनुसूची V - प्रांतीय विधानमंडलों की संरचना।

अनुसूची VI - मताधिकार।

अनुसूची VII - विधायी सूचियाँ।

अनुसूची VIII - संघीय रेलवे प्राधिकरण।

अनुसूची IX - एक महासंघ की स्थापना।

अगली शेष 6 अनुसूचियाँ बर्मा से संबंधित हैं।

 

1935 अधिनियम की कमियाँ

ü महासंघ की योजना असंतोषजनक थी।

ü इस अधिनियम ने सरकार की एक संघीय प्रणाली स्थापित करने का प्रयास किया

ü संघीय प्रणाली स्थापित करने में असफल रहा

ü ब्रिटिश प्रांतों और भारतीय प्रांतों को एक साथ लाने का प्रयास किया,

ü लेकिन वे ऐसा करने के लिए बाध्य नहीं थे।

ü कई प्रांतों ने इसमें शामिल होने से इनकार कर दिया और स्वतंत्रता की मांग की।

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By Vishwajeet singh

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