MHI-10, Lesson-8 , हड़प्पा के नगरीय समाज (Harappan Urban Societies) || The E Nub ||

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   हड़प्पा के नगरीय समाज

(Harappan Urban Societies)



·       सामाजिक विभेद के स्थलों के रूप में घर

·       नृवैज्ञानिक परिदृश्य

·       शवाधान प्रथाएं

·       जातीयता के बारे में विचार

 

सामाजिक विभेद के स्थलों के रूप में घर (Social Discrimination)

 

v  घरों के आकार, निर्माण पैटर्न, घरों की संरचना और उसकी अवस्थिति के आधार पर सामाजिक भेद का पता लगाया जा सकता है।

v  बड़े आकार के घर सम्पत्ति या सामाजिक हैसियत के सूचक होते हैं।

v  हड़प्पा के उत्खननकर्ता एम.एस. वत्स ने अन्य घरों के विपरीत कतिपय कच्ची झोपड़ियों को मजदूरों का घर कहा।

v  दूसरे तलवाला घर, नालीयुक्त सुविधा, अच्छे फर्श वाले स्नानागार और कुएं की मौजूदगी सामाजिक हैसियत के सूचक हैं।

v  मिशेल जानसेन और जर्मनी के पुरातत्वविदों - मोहनजोदड़ो के साक्ष्यों के आधार पर  - कमरों को तीन श्रेणियों में विभाजित किया

v   प्रवेश कमरे, पारगमन कमरे और अंतिम कमरे

v  प्रवेश कमरे से व्यक्ति घर में प्रवेश करता है।

v  पारगमन कमरों में एक से अधिक दरवाजे होते हैं

v  इनसे एक कमरे से दूसरे कमरे में जाया जा सकता है।

v  अंतिम कमरे निश्चित रूप से निजी थे

v  अंतिम कमरे में एक दरवाजा होता है, वह स्नानागार, भण्डारगृह या व्यक्तिगत कमरा हो सकता है।

v  केन्द्र में बड़े क्षेत्र को लगभग आंगन माना गया है, जिसमें ऊपर छत नहीं होती थी।

v  आंगन में संभवतः अधिकांश कार्यकलाप किए जाते थे।

v  अधिकांश कार्य महिलाएं करती थीं, परंतु यह नहीं माना गया कि आंगन महिलाओं के विशेष प्रयोजन के लिए थे।

v  हड़प्पा के घरों में पूर्णता दिखाई देती है।

v  विद्वानों ने कमरे के नक्शे से हड़प्पा के निवासियों के निजी या व्यक्तिगत स्थान की धारणा की व्याख्या करने का प्रयास किया है।

v  पानी के लिए कुए थे जिसका प्रयोग सार्वजनिक भी हो सकता था।

v  घरों में पक्का स्नानागार, शौचालय और नालियां थीं, जो सार्वजनिक नालियों से जुड़ी थीं।

v  घरों के अंदर मिलने वाले सामान भी सामाजिक अंतरों को उजागर करते हैं।

 


नृवैज्ञानिक परिदृश्य (Anthropological)

 

v  नृवैज्ञानिकों ने प्रमाणित किया है कि बहुमूल्य वस्तुएं जब व्यक्ति विशेष के हाथ में आती हैं, तो उनका उपयोग निर्वाह वस्तुओं के विनिमय से नहीं किया जा सकता है।

v  वस्तुओं के उत्पादन केन्द्र और इसके पाने के स्थान या संदर्भ सीमित होते थे।

v  एक पुरात्वविद् के सामने इस प्रकार अन्य समस्याएं भी होती हैं; जैसे- नष्ट होने वाली सामग्रियों से बनी बहुमूल्य वस्तुओं के साथ व्यवहार

v  पुरातात्विक दृष्टि से वस्त्र सुरक्षित रूप से प्राप्त नहीं होते, जिससे पुरातत्व के विद्वानों को प्राचीन लेन-देन में इसकी भूमिका सुनिश्चित करने में बाधा उत्पन्न होती है।

v  एस.आर. बिष्ट ने बनावली में एक व्यापारी के घर और एक आभूषण विक्रेता के घर की पहचान प्राप्त शिल्पकृतियों के आधार की है।

v  परंतु साधारण निवासियों के आवास में भी बहुमूल्य शिल्पकृतियां मिली हैं।

v  इस प्रकार सम्भ्रान्त वस्तुओं के पाए जाने के स्थल तथा कथित संभ्रांत क्षेत्रों में कोई संबंध नहीं दिखाई देता है।

v  इस प्रकार बहुमूल्य वस्तुओं का संबंध केवल नगरीय केन्द्रों से नहीं है, विशेष प्रयोजन की वस्तुएं छोटे केन्द्रों में भी पाई जा सकती हैं।

 

शवाधान प्रथाएं

v  हड़प्पा संस्कृति के लोगों में मिस्र और मेसोपोटामिया के समान शवाधान और कब्र की वस्तुओं के माध्यम से सामाजिक असमानता नहीं दिखाई देती है।

v  अधिकांश शव गड्ढों में प्रायः लम्बवत् रखे गए थे और सिर के पास मृद्भाण्ड रखे गए थे।

v  इसीलिए कब्र का गड्ढा सिर के पास चौड़ा होता था।

v  हड़प्पा में कब्र में मृद्भाण्डों की संख्या 2 से 40 तक तथा औसतन 15-20 होती थी।

v  मार्टिन व्हीलर को खुदाई में महिला का ताबूत मिला था।

v  कब्र में उसके आभूषण भी थे।

v  उनके अनुसार इस प्रकार की कब्र मेसोपोटामिया में भी मिली है।

v  जोनाथन केनोयर -  महिलाओं के शवों के साथ कांसे के दर्पण या शंखाकार पत्थर मिले हैं।

v  रीटा राइट के अनुसार - मृद्भाण्ड की आकृति की एकरूपता और अलंकृत मोटिफ के मानक से ज्ञात होता है कि अनेक कब्रों में पाए गए मृद्भाण्ड ही कुम्हार द्वारा बनाए गए थे।

v  कालीबंगा में तीन प्रकार के शवाधान मिले हैं, जो एक ही समय में प्रचलन में थे।

v  वहां शवाधान समूह में भी मिले हैं।

v  कब्र की वस्तुओं में मृद्भाण्ड, सीपी की चूड़ियां, मनके और तांबे के दर्पण मिले हैं।

v  व्यक्तिगत शवधानों में पात्रों की संख्या में पर्याप्त भिन्नता है।

v  पॉल रिसमैन - शवाधानों में निजी मूल्यों और सार्वजनिक प्रदर्शन के तत्त्वों के आधार पर भेद प्रकट किया है। हड़प्पा शवाधानों में सम्पत्ति नहीं मिली है।

v  रिसमैन - सम्पत्ति की ऐसी श्रेणियों पर संभ्रांतों द्वारा एकाधिकार करने के साक्ष्य नहीं मिले हैं।

 

जातीयता के बारे में विचार

 

v  सगोत्र संबंधों और जातीयता के विषय में पुरातात्विक स्रोतों से विशेष जानकारी नहीं मिलती।

v  जिम शेफर और लिचटेन्सटाइन - प्रारंभिक हड़प्पा समाज में जातीय समूहों का अर्थ निकालने का प्रयास किया है।

v  उन्होंने स्पष्ट सिरामिक शैलियों के माध्यम से ऐसी सीमाओं के रेखांकन के लिए स्थूल सांस्कृतिक (Macro Cultural) लक्षणों का प्रयोग किया, परंतु उनका यह प्रयोग संदिग्ध है।

v  शैरीन रत्नागर - वशानुक्रम स्थानीय समुदाय या कार्यात्मक रूप से विशेषीकृत समूह या भू-धारक सत्ता के रूप में जीवित रह सकते हैं।

v  विशाल स्मारकीय भवनों; जैसे-क्रमशः पिरामिडों और मंदिरों या महलों के निर्माण में मिस्र और मेसोपोटामिया दोनों में समुदाय या सगोत्र श्रम का प्रयोग किया गया था।

v  केनोयर (1998) -  कुम्हार अपने पूर्वजों की भांति ही एक स्थान पर रहने वाले वंशानुगत विशेषज्ञ रहे होंगे।

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By Vishwajeet Singh

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