युद्ध अवधि के दौरान राष्ट्रवादी राजनीति Part-2
होमरूल लीग की स्थापना एवं तत्कालीन परिस्थितियां-
v प्रथम विश्व युद्ध (1914-18) के दौरान - भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का प्रचार तीव्र
v भारत में स्वशासन की मांग प्रबल
v नरमपंथी दल के दो प्रमुख नेता -
गोपाल कृष्ण गोखले तथा फिरोजशाह मेहता
v राष्ट्रवादी नेता - ब्रिटिश सरकार पर जब तक दबाव नहीं डाला जाएगा, तब तक वे भारतीयों की मांगों को पूरा नहीं करेंगे।
v गरम दल विचारधारा का प्रभाव धीरे-धीरे बढ़ने लगा था।
v इस विचारधारा के लोगों ने 1915-16 में दो होमरूल लीग की स्थापना
v एक लीग के नेता तिलक
v 1914 में जेल से रिहा होने के पश्चात् महाराष्ट्र में लीग की स्थापना
v दूसरे लीग की नेता - एनी बेसेंट और एस. सुब्रह्मण्यम
v एनी बेसेंट 'थियोसाफिल सोसाइटी' की अध्यक्षा थीं, जिसका मुख्यालय मुद्रास में था।
होमरूल लीग का उद्देश्य
(i) भारतीयों को स्वराज्य दिलाना
(ii) स्वराज्य शान्तिपूर्ण, परन्तु सरकार पर दबाव डालकर प्राप्त करना
(iii) लोगों को स्वदेशी संस्थाएँ एवं वस्तुओं को अपनाने तथा विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार के लिए प्रेरित करना
v ये दोनों होमरूल लीग लोकप्रिय हो रहे थे।
v 1917 में इन दोनों लोगों की सदस्य संख्या 60 हजार तक पहुँच गई।
कार्यक्रम -
v नेताओं ने बहिष्कार एवं तीव्र विरोध का सहारा लिया।
v अंग्रेजी और देशी भाषा के समाचार पत्रों और विज्ञापनों के माध्यम से लोगों को सर्वप्रथम भारतीय स्तर पर एक संगठित राजनीतिक आंदोलन हेतु शिक्षित करने का प्रयास
v ताकि अंग्रेजों पर होमरूल की मांग को मानने हेतु दबाव बनाया जा सके।
v एनी बेसेंट ने अपने समाचार पत्र 'न्यू इण्डिया' में लोगों से अपील की कि - खंडित सुधारों की अपेक्षा भारतीयों को स्वशससन की मांग हेतु संगठित होना चाहिए।
v शीघ्र ही एनी बेसेंट को गिरफ्तार कर लिया गया
v कई समाचार पत्रों पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
v सरकार की दमनपूर्ण नीति सफल नहीं हुई।
v सरकार आंदोलन को कुचल नहीं सकी।
v उसके बाद देश-विदेश में आंदोलन तीव्र हो उठा।
v देश में प्रदर्शन, हड़तालें और सभाएं हुईं।
v संयुक्त राज्य अमरीका और कनाडा में रहने वाले भारतीयों ने 1913 में 'गदर पार्टी' की स्थापना की थी।
v इन्हीं दिनों उन्होंने भारत में अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध छेड़ने की शपथ ली।
v विभिन्न स्थानों पर सरकार के विरुद्ध कार्यवाहियों से प्रेरित होकर सिंगापुर स्थित भारतीयों की एक सैनिक टुकड़ी के 700 जवानों ने अंग्रेजी सरकार के विरुद्ध विद्रोह कर दिया।
v यद्यपि वे सफल नहीं हुए, तो भी उन्होंने सरकार को यह जता दिया कि उनकी दमनकारी नीतियों के विरुद्ध सेना में भी असंतोष फैल रहा है।
v इंग्लैण्ड की संसद में यह घोषणा - ब्रिटिश सरकार द्वारा भारतीयों को प्रशासन के प्रत्येक विभाग में अधिक-से-अधिक भाग लेने के लिए अवसर दिया जाएगा।
v राष्ट्रवादी नेता अंग्रेजों के झूठे आश्वासन सुन-सुनकर तंग आ चुके थे।
v अंग्रेजी घोषणाओं और विश्वासों के बावजूद देश में स्वराज्य की मांग बल पकड़ती गयी।
v आर.सी. मजूमदार ने लिखा है, - “श्रीमती एनी बेसेंट, तिलक और उनकी गतिविधियों द्वारा होमरूल आंदोलन का दूर-दूर तक देश में प्रचार हुआ और राजनीति में यह एक प्रबल आंदोलन बन गया।
v " गाँधी जी द्वारा 1919-20 में तिलक की मृत्यु के बाद राष्ट्रीय आंदोलन की बागडोर संभाल लेने के बाद तथा असहयोग आंदोलन शुरू करने के बाद एनी बेसेंट ने सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लिया।
होमरूल आंदोलन का महत्त्व -
1. इसने स्वराज्य की ठीक योजना प्रस्तुत की।
2. इस आंदोलन से यह अनुभव हुआ कि स्वतंत्रता के संघर्ष में राष्ट्र के समस्त साधनों को प्रयोग में लाना चाहिए।
3. इसने भिक्षावृत्ति वाले नरमपंथियों का महत्त्व खत्म कर दिया।
4. इस आंदोलन ने जनता में स्वतंत्रता के प्रति नया उत्साह भर दिया और लोग बढ़-चढ़कर भाग लेने लगे।
5. इसका प्रभाव इंग्लैण्ड तथा अमेरिका पर भी पड़ा और उन्होंने भारत को स्वराज्य प्रदान करने के पक्ष में आवाज उठाई।
6. ब्रिटेन की लेबर पार्टी ने अपने नाटिंघम के अधिवेशन में भारत को होमरूल देने के पक्ष में एक प्रस्ताव पास किया।
7. इसी आंदोलन कारण 1919 का सुधार आंदोलन लाया गया।
सुरेन्द्रपाल बनर्जी ने इस संबंध लिखा है, "इस घोषणा ने विद्रोहियों का मुंह बंद कर दिया।"
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राष्ट्रवादी राजनीति Lesson-9 Part-2
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By Vishwajeet Singh