MHI-08, Lesson-7, कृषि के उद्गम (Part-2)
- नवपाषाण कालीन क्रान्ति की महत्ता
- भारतीय उपमहाद्वीपीय - प्राचीन कृषि प्रमाणों
Ø सर्वप्रथम, पश्चिम एशिया में कृषि का आरम्भ हुआ,
Ø इसका विस्तार दक्षिण एशिया होते हुए भारतीय उपमहाद्वीप तक फैल गया।
Ø सिन्धु सभ्यता के मेहरगढ़ पुरास्थल से कृषि के प्रथम साक्ष्य मिले हैं।
Ø जिन कृषि फसलों के साक्ष्य मिले हैं - उनमें चावल की कृषि के प्रमाण नहीं मिलते हैं।
Ø सम्भवतः चावल भी कृषि की शुरुआत सर्वप्रथम बेलान घाटी क्षेत्रों में हुई।
Ø बलूचि क्षेत्रों से कृषि और पशुओं को पालने की शुरुआत के सम्बन्ध में पुरातात्त्विक उत्खननों में साक्ष्य मिले हैं।
Ø बलूचिस्तान में काची के मैदानों को ऐसे अनेक लाभ प्राप्त थे और ऐसी अनेक सुविधाएँ प्राप्त थीं, जिससे उस क्षेत्र में प्रारम्भिक कृषि अर्थव्यवस्था का उदय हुआ।
Ø बलूचिस्तान की बंजर श्रेणियों के मध्य छोटी-छोटी घाटियों में पहाड़ियों से आती नदियों द्वारा लाई गई उपजाऊ जलोढ़ से उन भू-खण्डों पर सिंचाई करना आसान हो गया था
Ø मेहरगढ़ पुरास्थल सिन्धु सभ्यता का एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्र है।
Ø मेहरगढ़ में जिन फसलों की खेती की जाती थी -
उनमें जौ की दो किस्में और गेहूँ की तीन किस्में शामिल थीं।
Ø अलूचा और खजूर के जले हुए बीज भी इन बस्तियों से ही प्राप्त हुए थे।
Ø यहाँ पूर्व मृद्भांड बस्ती की शुरुआत लगभग 6000 ईसा पूर्व निर्धारित की गई है।
Ø काची के मैदान मवेशी और भेड़ पालने के तथा गेहूँ और जौ खेती के स्वतन्त्र अधिकेन्द्र थे।
Ø इसी तरह, मेहरगढ़ के द्वितीय चरण ताम्रपाषाण चरण का सूचक है,
Ø जिसमें गेहूँ और जौ की खेती के साथ-साथ कपास की खेती के भी साक्ष्य मिले हैं।
Ø हड़प्पा निवासियों ने गेहूँ, जौ और कपास की खेती का ज्ञान मेहरगढ़ के प्रारम्भिक पूर्वजों से प्राप्त किया होगा।
Ø कृषि और पशुपालन का कार्य भारतीय उपमहाद्वीप की ओर पश्चिम एशिया से फैला।
Ø प्राचीन कृषि के प्रमाण हमें कश्मीर क्षेत्रों से भी प्राप्त होते हैं।
Ø यहाँ महत्त्वपूर्ण पुरास्थल बुर्जहोम तथा गुफकराल हैं, जहाँ से प्राचीन कृषि के साक्ष्य मिले हैं।
Ø इन स्थलों के प्रथम चरण में आखेटन संग्राहक समाज की पुष्टि होती है।
Ø हालांकि बुर्जहोम से कृषि का स्पष्ट साक्ष्य नहीं मिला है।
Ø जबकि गुफकराल के प्रथम चरण में मसूर, अरहर, गेहूँ और जौ के जले हुए अन्न कण प्राप्त हुए हैं।
Ø साथ ही पशुओं की हड्डियाँ भी मिली हैं।
Ø गुफकराल के द्वितीय एवं तृतीय चरणों में वनस्पति कृषीकरण और पाले गए जानवरों के साक्ष्य मिले हैं।
Ø बेलान घाटी के नवपाषाण कालीन किसानों का उदय भारत में सबसे प्रारम्भिक चावल उगाने वाले समुदाय के रूप में हुआ।
Ø यह मतं अधिकतर विद्वानों को मान्य नहीं है।
Ø संग्रहण अर्थव्यवस्था से कृषि अर्थव्यवस्था में संक्रमण के भी इस क्षेत्र में स्पष्ट साक्ष्य मिलते हैं।
Ø निचली मध्य गंगा घाटी में अवस्थित पुरास्थल चिरांद चेचर, सेनुआर आदि क्षेत्रों से प्राचीन कृषि कार्यों के साक्ष्य मिले हैं।
Ø यहाँ के किसान चावल, जौ, मटर, मसूर और कुछ मोटे अनाजों की खेती करते थे।
Ø दक्षिण भारत के नवपाषाण कालीन किसानों द्वारा जिन फसलों की खेती की जाती थी, वे गेहूँ, कुलथी और मूँग थीं।
Ø दक्षिण भारत के किसी भी क्षेत्र से चावल के प्राचीन प्रमाण नहीं मिले हैं।
Ø यहाँ खजूर भी उगाया जाता था।
Ø ऐसा प्रतीत होता है कि यहाँ नवपाषाण के दौरान सोपान कृषि की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता रही होगी।
Ø इसका उपयोग फसलें उगाने के लिए छोटे-छोटे खेत बनाने के लिए किया जाता था।
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BY VISHWAJEET SINGH